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प्रश्न :
जब से भारत ने 1974 में शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया, तब से यह परमाणु प्रौद्योगिकी हस्तांतरण व्यवस्था की अस्वीकृति के निशाने पर रहा है। हालाँकि अब भारत परमाणु क्लब के लिये परित्यक्त देश नहीं रहा है। चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
26 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• 1974 में भारत द्वारा किये गए परमाणु परीक्षण तथा NSG की स्थापना और भारत के प्रति इसकी प्रतिक्रिया की चर्चा।
• भारत द्वारा NSG में प्रवेश हेतु प्रयास व उसके निहितार्थ के साथ-साथ वर्तमान स्थिति पर चर्चा।
हल करने का दृष्टिकोण
• 1974 में भारत के परमाणु परीक्षण के उद्देश्य व NSG की स्थापना के उद्देश्य के साथ उत्तर प्रारंभ करें।
• NSG का भारत के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
• भारत द्वारा NSG में प्रवेश हेतु किये गए प्रयास व वर्तमान में किये जा रहे प्रयास तथा इसके निहितार्थ को स्पष्ट करें।
• भविष्योन्मुखी संदर्भ बताते हुए निष्कर्ष लिखें।
भारत द्वारा अपनी सुरक्षा व क्षेत्रीय शक्ति संतुलन स्थापित करने के उद्देश्य से वर्ष 1974 में शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया गया था। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप विश्व के प्रमुख परमाणु आपूर्तिकर्त्ता देशों द्वारा परमाणु और इससे संबंधित निर्यात के वैश्विक कारोबार को नियंत्रित करने के लिये वर्ष 1975 में परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह (NSG) की स्थापना की गई और भारत पर कई प्रतिबंध आरोपित किये गए। इस संदर्भ में एन.एस.जी. द्वारा परमाणु तकनीक के हस्तांतरण हेतु कुछ मापदंड निर्धारित किये गए हैं जो निम्न लिखित हैं-
- यह सुनिश्चित करना कि परमाणु प्रौद्योगिकी आयात करने वाला देश इसका उपयोग हथियार बनाने में नहीं करेगा।
- परमाणु तकनीक की चोरी व इसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाना।
- समूह द्वारा परमाणु तकनीक का हस्तांतरण उन्हीं देशों को किया जाएगा जहाँ अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के सुरक्षा मानदंड लागू हैं।
परिणामस्वरूप भारत जो कि ब्रिटेन इत्यादि परमाणु ऊर्जा संपन्न देशों से प्रौद्योगिकी का आयात करता था, पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके बावजूद भारत ने वर्ष 1998 में द्वितीय परमाणु परीक्षण कर डाला, इससे भारत के प्रति एन.एस.जी. का रुख और सख़्त हो गया तथा भारत के लिये यह अनिवार्य बना दिया गया कि जब तक भारत एन.पी.टी. पर हस्ताक्षर नहीं करेगा उसके साथ परमाणु ऊर्जा का व्यापार नहीं किया जाएगा।
परंतु वर्ष 2007-2008 के दौरान भारत के बेहतर रिकॉर्ड को देखते हुए एन.एस.जी. ने कुछ रियायतें प्रदान कीं ताकि भारत एन.एस.जी. के सदस्य देशों के साथ परमाणु ऊर्जा का आदान-प्रदान कर सके। इसी संदर्भ में भारत द्वारा अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता व हाल में जापान के साथ किया गया परमाणु समझौता उल्लेखनीय है।
लेकिन वर्तमान में आर्थिक विकास की धुरी बन चुकी परमाणु ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता को देखते हुए भारत को परमाणु ऊर्जा के व्यापार में पूरी रियायत की आवश्यकता है, इसी को ध्यान में रखते हुए भारत वर्ष 2010 से ही एन.एस.जी. की सदस्यता हेतु प्रयासरत है। किंतु चीन व कुछ अन्य देशों के विरोध की वजह से भारत अब तक इसका सदस्य नहीं बन पाया है।
ध्यान देने योग्य है कि इस संदर्भ में वर्तमान राजग सरकार द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2014 से ही सशक्त कूटनीतिक पहल की जा रही है। इसकी परिणति के रूप में भारत के एमटीसीआर व वासेनार ग्रुप में प्रवेश के तौर पर देखा जा सकता है और भारत एन.एस.जी. की सदस्यता की दहलीज़ पर खड़ा है। जहाँ भारत का समर्थन कई विकसित व विकासशील देश कर रहे हैं।
इस प्रकार भारत को एन.एस.जी. की सदस्यता हेतु एक बार पुन: कूटनीतिक स्तर पर प्रयास करने होंगे और अपने विरोधियों को अपनी तरफ करना होगा ताकि भविष्य में भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों को पूरा कर सके।
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