‘संगम साहित्य से प्राचीन तमिल देश के समाज व संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है।’ विश्लेषण कीजिये। (200 शब्द)
26 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
प्रश्न विच्छेद • संगम साहित्य को संक्षेप में बताते हुए इससे तमिल देश के समाज एवं संस्कृति के पक्षों को उजागर करना। हल करने का दृष्टिकोण • उत्तर के प्रारंभ में संगम साहित्य की संक्षिप्त चर्चा करनी है। • संगम साहित्य में वर्णित तमिल समाज एवं संस्कृति की चर्चा करनी है। • संक्षिप्त निष्कर्ष लिखें। |
ऐतिहासिक युग के प्रारंभ में दक्षिण भारत का क्रमबद्ध इतिहास हमें जिस साहित्य से ज्ञात होता है उसे संगम साहित्य कहते हैं। प्रमुख संगम ग्रंथ जिनमें हमें तत्कालीन समाज एवं संस्कृति की जानकारी मिलती है- शिलप्पादिकारम् और मणिमैखले हैं।
संगम साहित्य से तत्कालीन समाज एवं संस्कृति आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। यह साहित्य हमारे आर्य एवं द्रविड़ संस्कृति के समन्वय का चित्र उपस्थित करता है। उत्तर भारतीय समाज की कई परंपराओं को तमिल वासियों ने अपना लिया था। तमिल समाज उत्तर भारतीय समाज की भाँति वर्ग भेद पर आधारित था। सर्वोच्च स्थान राजा का ही होता था जिसे समाज में सर्वाधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था।
संगम साहित्य की तत्कालीन समाज के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाली शिलप्पादिकारम् और मणिमैखले जैसी रचनाएँ उस समय की सामाजिक स्थिति को भाँति-भाँति उजागर करती हैं। इन ग्रंथो में तत्कालीन समाज में नारी की स्थिति, दार्शनिक एवं शास्त्रार्थ संबंधित बातों को शामिल किया गया है। संगमकालीन समाज में वर्ण एवं जाति व्यवस्था उतनी सख्त नही थी जितनी उत्तर भारत में थी सामाजिक वर्गों में ब्राह्मणों को समाज में सर्वाधिक प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त था। ब्राह्मणों के पश्चात् वेल्लार वर्ग का स्थान था।
संगम युग के तमिल शाकाहार एवं मांसाहार दोनों तरह के भोजन करते थे। वे लोक संगीत, नृत्य एवं विविध प्रकार के वाद्यों द्वारा मनोरंजन किया करते थे। धनी वर्ग पक्के तथा निर्धन वर्ग कच्चे मकानों में रहते थे। संगमकालीन तमिल-वासी अपनी स्थिति के अनुरूप कार्य करते थे। महिलाओं को अपना जीवन साथी चुनने की छूट थी। तमिल ग्रन्थ तोलकाप्पियम में आठ प्रकार के विवाहों का भी उल्लेख मिलता है। विधवाओं की स्थिति अधिक शोचनीय थी। उच्च जातियों में सती प्रथा के प्रचलन के भी संकेत मिलते हैं।
तमिल साहित्य में संस्कृतिक पक्षों की भी जानकारी प्राप्त होती है। इस काल में मृतक के संस्कारों की जानकारी प्राप्त होती है। अग्निदाह एवं समाधीकरण दोनों ही विधियों द्वारा शव का अंतिम संस्कार किया जाता था। कभी-कभी शवों को खुले में जानवरों के खाने के लिये छोड़ दिया जाता था।
संगम साहित्य से पता चलता है कि ब्राह्मण अपना समय अध्ययन एवं अध्यापन में व्यतीत करते थे, साथ ही अन्य धर्मों के अनुयायियों से उनका वाद-विवाद होता रहता था।
तमिल देश के प्राचीन देवता मुरूगन को माना जाता है। कालांतर में इनका नाम सुब्रह्यण्य हो गया और स्कंद कार्तिकेय के साथ उनका तादात्म्य स्थापित कर दिया गया।
तमिल प्रदेश में देवताओं की पूजा विधियाँ उत्तर भारत के ही समान थीं। कावेरी पत्तन में इंद्र की पूजा होती थी तथा इसके लिये विशेष समारोह का आयोजन किया जाता था।
संगम साहित्य के अध्ययन से तमिल समाज तथा संस्कृति की अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। सामान्य मनुष्यों की दिनचर्या का जितना सूक्ष्म विवरण इन साहित्यों में प्राप्त होता है, वह बहुत ही कम ग्रंथो में दिखाई पड़ता है। अत: संगम साहित्य सामाजिक एवं संस्कृतिक जानकारी के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।