भारतीय न्यायपालिका स्वभाव से अक्षम व धीमी हो गई है। इस कथन के आलोक में भारतीय न्यायिक व्यवस्था की समस्याओं को उजागर कीजिए। (250 शब्द)
18 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाएक कुशल एवं त्वरित न्यायिक प्रणाली प्रगतिशील समाज का आवश्यक पहलू है। भारतीय न्यायापालिका के संदर्भ में हालिया घटनाओं को देखा जाए तो यह विभिन्न प्रकार की समस्याओं से ग्रस्त है जिसके परिणाम स्वरूप यह त्वरित न्याय प्रदान करने में सक्षम नहीं है।
भारतीय न्यायपालिका में विद्यमान समस्याएँ-
1. न्यायिक बैकलॉग: अदालतों में मामलों की भारी संख्या न्यायपालिका की एक प्राथमिक समस्या रही है और पिछले दशक में इसमें वृद्धि देखी गई है। अप्रैल 2018 तक उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों 3 करोड़ से अधिक मामले लंबित थे। इनमें से 86 प्रतिशत मामले अधीनस्थ न्यायालयों में, जबकि लगभग 13.8 प्रतिशत मामले उच्च न्यायालयों में तथा शेष 0.2 प्रतिशत मामले सर्वोच्च न्यायालय में लंबित थे 1 जुलाई 2019 के एक आँकड़े के अनुसार, उच्चतम न्यायालय में 59,331 मामले लंबित थे, जबकि उच्च न्यायालयों में 43.55 लाख मामलों का निराकरण होना बाकी है।
2. न्यायाधीशों की कमी: न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी न्याय में विलेब का प्रमुख कारण है। कानून मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रति 10 लाख लोगों पर औसतन 19 न्यायाधीश हैं, साथ ही कुल मिलाकर न्यायापालिका में 6000 से भी अधिक न्यायाधीशों की कमी है जिसमें 5784 निचली आदालतों तथा 406 रिक्तियाँ 240 उच्च न्यायालयों में हैं।
3. भ्रष्टाचार: भ्रष्टाचार भारतीय न्यायपालिका की आम समस्या है। विभिन्न शोधों के अनुसार, देश में भ्रष्टाचार व्यापक स्तर पर व्याप्त है और 45 प्रतिशत से भी अधिक लोगों का मानना है कि भारतीय न्यायपालिका भ्रष्ट है। उल्लेखनीय है कि यह समस्या केवल निचली अदालतों तक ही सीमित नहीं है बल्कि उच्चतर स्तर भी विद्यमान है जो कि अत्यंत खतरनाक है।
4. न्यायिक अतिरेक: पिछले कुछ वर्षों से न्यायपालिका के कामकाज की आलोचना की जाती रही है, विशेषकर विधि निर्माताओं द्वारा। ऐसे कुछ मामलों में 1 अप्रैल, 2020 से BS–VI वाहनों के इस्तेमाल अनिवार्य करने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय, 2G मामले में आपरेटरों की सेवा बंद करना, गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा राज्य में CNG वाहन की अनिवार्यता आदि शामिल हैं।
5. उपर्युक्त के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण हैं। जिससे न्यायिक प्रक्रिया की कुशलता अवरुद्ध हुई है, जैसे- राज्य और केंद्रीय विधानों की बढ़ती संख्या, बार-बार स्थगन, रिट अधिकार क्षेत्र का अंधाधुंध उपयोग, निगरानी के लिये पर्याप्त व्यवस्था का अभाव आदि।
इन समस्याओं के बावजूद भारतीय न्यायपालिका अपने प्रगतिशील राह पर अग्रसर है तथा उपलब्ध संसाधनों के आधार पर न्यायिक प्रक्रिया का संचालन कर रही है।