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प्रश्न :
बलबन का राजत्व प्रतिष्ठा, शक्ति तथा न्याय पर आधारित था। चर्चा कीजिये।
17 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
कथन बलबन का राजत्व प्रतिष्ठा, शक्ति एवं न्याय पर आधारित होने की चर्चा से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
बलबन के राजत्व के विषय में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
बलबन का राजत्व प्रतिष्ठा, शक्ति एवं न्याय पर आधारित होने की चर्चा कीजिये।
उचित निष्कर्ष लिखिये।
बलबन को अमीरों की शक्ति का एहसास सुल्तान नासिरूद्दीन महमूद के नायब या संरक्षक के रूप में कार्य करने के समय से ही था। अत: उस समय उसने समस्त सैनिक एवं असैनिक शक्तियों से युक्त शासक की आवश्यकता का अनुभव करते हुए इसी के अनुरूप राजत्व को आकार दिया।
बलबन का राजत्व प्रतिष्ठा, शक्ति एवं न्याय पर आधारित होने का वर्णन निम्नलिखित आधार पर किया गया है-
- बलबन का मानना था कि आतंरिक एवं बाह्य संकट का सामना करने का एकमात्र उपाय सम्राट की प्रतिष्ठा एवं शक्ति को बढ़ाना है जिसके लिये वह निरंतर प्रयत्नशील रहा।
- बलबन ने राजा के पद को विशेष स्थान प्रदान किया ताकि अपनी शक्ति एवं सत्ता के लिये अभिजात वर्ग पर निर्भर न रहना पड़े।
- बलबन के अनुसार, सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर की छाया और परमात्मा की कृपा को ग्रहण करने वाला होता है। उसका मानना था कि जनहित के कल्याण के लिये राजा के पद एवं प्रतिष्ठा को बनाए रखना उसका सर्वोच्च कर्त्तव्य है।
- बलबन ने अमीरों पर अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिये सिजदा एवं पायबोस जैसी कठोर दरबारी शिष्टाचार एवं नई प्रथाओं को लागू किया।
- दिल्ली सल्तनत की प्रतिष्ठा को ऊँचा उठाने के लिये बलबन ने फारस के इस्लामी राजत्व के सिद्धांतों एवं परंपराओं के आधार पर अपने शासन को संगठित किया।
- राजत्व की प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए बलबन का विश्वास था कि कुलीन घरानों और प्राचीन वंशों के व्यक्तियों को ही प्रभुत्व और शक्ति का अधिकार था। हालाँकि बलबन ने तुर्क अमीरों की शक्ति एवं एकाधिकार को ध्यान में रखते हुए निम्न वर्ग के तुर्कों को न केवल महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया बल्कि उन्हें ‘चालीस’ के समकक्ष स्थान भी दिया।
- बलबन ने जनता का विश्वास प्राप्त करने के लिये न्याय देने में थोड़ा भी पक्षपात नहीं किया। अपने अधिकारों की अवहेलना करने वाले बड़े-से-बड़े व्यक्ति को भी बलबन नहीं छोड़ता था।
निष्कर्षत: बलबन का राजत्व शक्ति, प्रतिष्ठा एवं न्याय पर आधारित था। शासन की प्रतिष्ठा को पुन: कायम करने में बलबन को बहुत अधिक समय नहीं लगा। बलबन ने अपने व्यक्तित्व को राजत्व के लिये बलिदान कर दिया।
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