आशा गोपालन एक युवा आईपीएस (IPS) अधिकारी हैं। कारागार अधीक्षक के रूप में उनकी नियुक्ति एक ऐसे कारागृह में होती है जहाँ कुछ प्रभावी राजनेता व बाहुबली अपराधी सज़ा काट रहे हैं। अपना कार्यभार संभालते ही आशा को पता चलता है कि इस कारागृह में राजनेताओं तथा अपराधियों को वी.वी.आई.पी (VVIP) सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं तथा कारावास एक प्रकार से उनके लिये होटल जैसी सुविधाएँ प्रदान करता है। इतना ही नहीं, वे जब चाहे कारागृह से बाहर आ-जा सकते हैं और ये सब उनके लिये बड़ी सामान्य सी बात है। आशा जब इस संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से बात करती हैं, तो उन्हें चुप रहने की सलाह दी जाती है। आशा विरोध करती हैं और इससे पहले कि वइ कोई निर्णय लेतीं उनका तबादला कर दिया जाता है। (250 शब्द)
(a) न्यायिक तंत्र के एक अभिन्न अंग के रूप में कारागृहों का महत्त्व सर्वविदित है, तथापि कारागृहों से संबंधित अनियमितताएँ व इनका कुप्रबंधन एक ऐसा मुद्दा है जो समय-समय पर मीडिया रिपोर्टों की सुर्खियाँ बनता रहता है परंतु इसका कोई प्रभावी समाधान अभी तक नहीं निकाला जा सका है। कारागृहों से संबंधित कुछ प्रमुख समस्याओं के रूप में हम निम्नलिखित की गणना कर सकते हैं-
एक रिपोर्ट के अनुसार, दो-तिहाई से अधिक कैदी जो भारतीय जेलों में बंद हैं, वे ‘अंडर ट्रायल’ मुकदमों के अंतर्गत हैं। इनमें अधिकांश कैदी सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों से आते हैं। कुल कैदियों के प्रतिशत के रूप में इनकी हिस्सेदारी कुल जनसंख्या में इनके प्रतिशत से कहीं अधिक है। इनमें से एक बड़ी संख्या ऐसे कैदियों की है जो ‘अंडरट्रायल’ कैदी के रूप में जेल में इतना समय काट चुके होते हैं, जो उनको मिलने वाली सज़ा से भी ज़्यादा है। जेल में भ्रष्टाचार का आलम यह है कि यदि कोई बड़ा नामचीन अपराधी या सफेदपोश अपराधी या राजनेता जिसे संगीन अपराध के लिये सज़ा सुनाई गई है, को ‘फाइव स्टार’ होटलों जैसी सुविधाएँ मुहैया कराई जाती है। यहाँ तक कि वह अपनी मर्जी से बाहर आ-जा सकता है। कई समाचार देश के हर भाग से समय-समय पर सुनने को मिलते रहते हैं।
इसके अतिरिक्त जेल में हिंसा की भी कई घटनाएँ समय-समय पर देखने-सुनने को मिलती रहती हैं। कैदियों को आसानी से हथियार भी उपलब्ध हो जाते हैं। NCRB की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2001 से 2010 के दौरान 12 हज़ार से अधिक कैदियों की जेल में अप्राकृतिक मृत्यु हुई।
(b) उपरोक्त केस स्टडी में वर्णित परिस्थिति किसी भी निष्ठावान अधिकारी के मनोबल व अभिप्रेरणा को तोड़ने का काम करेगी परंतु त्यागपत्र देना पलायनवादिता को दर्शाता है, इसलिये मैं आशा को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने की सलाह दूँगा।
एक सिविल सेवक के लिये दृढ़-संकल्प, साहस, प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी अभिप्रेरणा बनाए रखने की क्षमता, लचीलापन आदि वे गुण हैं जो सत्यनिष्ठा के समान ही अपेक्षित व वांछनीय हैं। मैं आशा को यह समझाने का प्रयास करूँगा कि सिस्टम में रहकर ही सिस्टम में बदलाव लाया जा सकता है। उसे भावनात्मक बुद्धिमत्ता का प्रयोग करते हुए अपना निर्णय लेना चाहिये न कि भावना में बहकर।
मैं उसे सलाह दूँगा कि उसे सिस्टम में रहकर इस प्रकार की अनियमितता व भ्रष्टाचार के संबंध में पहले मज़बूत सबूत जुटाने चाहिये और फिर सक्षम प्राधिकारियों की सहायता से इस पर कार्यवाही करने का प्रयास करना चाहिये। भविष्य में इसमें मीडिया की भी सहायता ली जा सकती है।
साथ ही मैं उसे यह भी आभास दिलाऊँगा कि उसके जैसे सत्यनिष्ठ व ईमानदार अधिकारियों की देश को सख्त ज़रूरत है और वृहद् जनहित को ध्यान में रखते हुए उसे अपने निर्णय पर अवश्य ही पुनर्विचार करना चाहिये। मेेरे तर्को से संभंव है कि आशा अपने त्यागपत्र के निर्णय को वापस ले और यही उचित भी होगा।