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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    भारत के एकीकरण में राज्यों के जन आंदोलन की भूमिका का आकलन कीजिये। लोकतांत्रिक विचारधारा की वाहक होने के बावजूद कॉन्ग्रेस देशी रियासतों में लोकतांत्रिक विचारों को ले जाने में अग्रसक्रिय क्यों नहीं रही? (250 शब्द)

    12 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    भारत के एकीकरण में राज्यों के जन-आंदोलन की भूमिका को बताना है।

    कॉन्ग्रेस द्वारा देशी रियासतों में लोकतांत्रिक विचारधारा को ले जाने में अग्रसक्रिय न होने के कारणों को स्पष्ट करना है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    भारत के एकीकरण की पृष्ठभूमि के साथ परिचय दें।

    एकीकरण में राज्यों के जन-आंदोलन की भूमिका को स्पष्ट करें।

    लोकतांत्रिक विचारधारा को कॉन्ग्रेस द्वारा रियासतों में ले जाने की अग्रसक्रियता न होने के कारणों को बताएँ।

    आज़ादी के पूर्व से ही रियासतों में जन-आंदोलनों का उभार हो गया था। स्वतंत्रता की प्राप्ति से प्रेरित इन आंदोलनों का ही परिणाम था कि आज़ादी के बाद अधिकांश रियासतों ने अपना विलय भारत में कर लिया। परंतु कुछ ऐसी भी रियासतें थीं (हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर) जो जन भावना के विपरीत जाना चाहती थीं। ऐसे में इन राज्यों में जन-आंदोलनों के उभार ने भारत के एकीकरण को पूर्ण किया।

    कश्मीर को छोड़कर इन रियासतों की जनता भारत संघ में शामिल होना चाहती थी। उदाहरण के तौर पर देखें तो हैदराबाद रियासत की जनता निजाम के शासन के खिलाफ थी और सशक्त विद्रोह पर उतर आई। महिलाएँ निजाम के शासन में काफी शोषित महसूस कर रही थी, अत: उन्होंने आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आंदोलन के बढ़ते स्वरूप को देखते हुए निजाम द्वारा इसे दबाने के लिये अर्द्धसैनिक बल को भेजा गया जिसने जनता पर काफी अत्याचार किये और अंतत: भारत सरकार को हस्तक्षेप करना पड़ा तथा सैनिक कार्रवाई द्वारा हैदराबाद को भारत संघ में मिला लिया गया। आंतरिक स्वायत्तता के करार के साथ जनता के इच्छानुरूप मणिपुर भी सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर के बाद भारतीय संघ का हिस्सा बन गया। कश्मीर की स्थिति में जन-आंदोलन व कबायली हमले ज़िम्मेदार रहे हैं। परिणामस्वरूप कश्मीर का भी भारत में विलय कर लिया गया।

    कुल मिलाकर यदि देखा जाए तो भारत के एकीकरण में इन रियासतों में उत्पन्न हुए जन-आंदोलनों ने प्रमुख भूमिका निभाई जिसने एक भारत का सपना साकार करने मेें तत्कालीन राष्ट्र निर्माताओं के रास्ते को आसान कर दिया। लेकिन यदि कॉन्ग्रेस की बात की जाए तो वह लोकतांत्रिक विचारधारा की हिमायती होते हुए भी इस विचारधारा को देशी रियासतों में प्रसारित करने में विफल रही जिसे निम्नलिखित प्रमुख बिंदुओं से समझा जा सकता है:

    • तत्कालीन परिस्थितियाँ जटिल अवस्था में थीं। भारत के समक्ष एकीकरण व लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पुष्ट करने की स्मस्या स्वयंमेव विद्यमान थी।
    • आर्थिक विकास जो कि राष्ट्रीय एकीकरण के लिये आवश्यक था, उसे भी सुनिश्चित किया जाना अभी बाकी था।
    • भारत कई टुकड़ों में बँटा था और कई तरह की विविधताएँ मौजूद थीं, भारत का एकीकरण इन्हीं विविधताओं को ध्यान में रखकर समुचित तरीके से किया जाना था।

    अत: उपरोक्त कारणों के अलावा भी कुछ अन्य ऐसी स्थितियाँ विद्यमान थीं जिसके कारण कॉन्ग्रेस द्वारा रियासतों में अपनी लोकतांत्रिक विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित नहीं किया जा सका था। हालाँकि रियासतों का विलय व राज्यों के पुनर्गठन के पश्चात् संपूर्ण भारत पूरी तरह से विविधताओं को धारण किये हुए लोकतांत्रिक प्रक्रिया का वाहक बन गया।

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