‘कफन’ की संवेदना पर विचार कीजिये। क्या यह कहानी दलित-विरोधी है?
10 Dec, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यकफन की संवेदना का सबसे मुख्य बिंदु उसमें व्यक्त होने वाला चरम यथार्थवाद है। इसमें सिर्फ प्रश्न खड़े किये गए हैं, उत्तर या उपदेश देने की कोशिश दूर-दूर तक नज़र नहीं आती है। यद्यपि ‘सद्गति’, ‘दूध का दाम’ और ‘पूस की रात’ में भी प्रेमचंद का यथार्थवाद प्रकट हुआ है किंतु वहाँ उसकी चुभन इतनी तीखी नहीं है।
कफन में प्रेमचंद घीसू और माधव की कामचोरी को उनकी व्यक्तिगत कामचोरी घोषित नहीं करते बल्कि उसके पीछे की ज़िम्मेदार स्थितियों को उभारते हैं। वे लिखते हैं- ‘‘जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से कुछ बहुत अच्छी नहीं थी; और किसानों के मुकाबले में वे लोग जो किसानों की दुर्बलताओें से लाभ उठाना जानते थे, कहीं ज़्यादा संपन्न थे; वहाँ इस तरह की मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात नहीं थी।’’ सामाजिक समस्याओं का यह विश्लेषण कहानी के कुछ अन्य प्रसंगों में और ज़्यादा घनीभूत होकर उभरा है जहाँ प्रेमचंद सामाजिक और धार्मिक व्यवस्था में निहित विसंगतियों पर कड़ी चोट करते हैं।
गौरतलब है कि कुछ दलित विचारकों की राय में यह कहानी दलित विरोधी चेतना से भरी है। घीसू और माधव की जाति चमार बताई गई है। आरोप यह है कि प्रेमचंद घीसू और माधव की जाति का ज़िक्र किये बिना भी यह कहानी लिख सकते थे क्योंकि घोर गरीबी किसी व्यक्ति को संवेदनहीन बनाने के लिये अपने आप में पर्याप्त है। किंतु, प्रेमचंद पर यह आक्षेप उचित नहीं। दलितों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता ‘सद्गति’ और ‘दूध का दाम’ जैसी कहानियाें और ‘गोदान’ जैसे उपन्यासों के सिलिया आदि चरित्रों से स्पष्ट हो जाती है। घीसू और माधव को वह चमार जाति का सिर्फ इसलिये बताते हैं ताकि समझा जा सके कि दलित जातियों का जीवन कितना अभावग्रस्त है। यदि कहानी को ध्यान से पढ़ें तो साफ नज़र आता है कि उनकी राय में घीसू और माधव की कामचोरी और संवेदनहीनता के पीछे उनकी व्यक्तिगत कमज़ोरियाँ नहीं बल्कि सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था है।