किसी भी संगठन की प्रामाणिकता, व्यापक महत्त्व के मुद्दों को हल करने की इसकी क्षमता द्वारा निर्धारित होती है। उन कारणों का उल्लेख कीजिये जिनके चलते राष्ट्र संघ अपनी क्षमता के अनुरूप प्रदर्शन करने में विफल रहा, संयुक्त राष्ट्र के संदर्भ में इस तरह के परिणामों से बचने के लिये इससे क्या सबक लिया जा सकता है। (250 शब्द)
10 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहास
प्रश्न विच्छेद • राष्ट्र संघ की असफलता के कारणों को स्पष्ट कीजिये। • संयुक्त राष्ट्र संघ, राष्ट्र संघ के परिणामों से क्या सबक ले सकता है? हल करने का दृष्टिकोण • सर्वप्रथम भूमिका लिखिये। • राष्ट्र संघ से अपेक्षाएँ तथा विफलता के कारण। • संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा राष्ट्र संघ की विफलताओं से बचने के लिये किया जाने वाला प्रयास। • निष्कर्ष दीजिये। |
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ की स्थापना का उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सद्भावना में वृद्धि करना, पुन: विश्वयुद्ध की व्यापक विनाशक परिस्थिति से विश्व को बचाना तथा विश्व में शांति की स्थापना करना था। राष्ट्र संघ की सफलता-असफलता को इन व्यापक महत्त्व के मुद्दों को हल करने की इसकी क्षमता द्वारा परखा जा सकता है। राष्ट्र संघ की असफलता को द्वितीय विश्वयुद्ध की विनाशक परिस्थिति में देखा जा सकता है जब राष्ट्र संघ ने वैश्विक महाशक्तियों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करके तथा तुष्टीकरण की नीति अपना कर विश्वयुद्ध के लिये आधारशिला का कार्य किया। वहीं दूसरी तरफ, द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् गठित संयुक्त राष्ट्र संघ ने विभिन्न विपरीत परिस्थितियों में अपनी प्रामाणिकता को सिद्ध किया है तथा राष्ट्रों के मध्य उचित मध्यस्थता द्वारा विवादों का समाधान किया है किंतु फिर भी संयुक्त राष्ट्र को अपने उज्ज्वल भविष्य हेतु राष्ट्र संघ की विफलता के कारणों से सबक लेने पर ध्यान देना होगा।
राष्ट्र संघ की विफलता का मुख्य कारण जहाँ जर्मनी, जापान, इटली द्वारा इसकी सदस्यता को त्यागना था, तो वहीं अमेरिका (जिसे राष्ट्र संघ की जननी कहा जाता है) द्वारा राष्ट्र संघ की सदस्यता ग्रहण नहीं करना था। इसी तरह वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के पाँच स्थायी सदस्यों के अतिरिक्त अन्य सदस्यों (भारत, जापान आदि) को स्थायी सदस्यता (सुरक्षा परिषद) प्रदान न करना संयुक्त राष्ट्र संघ के अलोकतांत्रिक रवैये को दर्शाता है। अत: इस दिशा में उचित प्रयास किया जाना चाहिये।
राष्ट्र संघ पर पूंजीवादी राष्ट्रों का प्रभुत्व था तथा पूंजीवादी विचारधारा को स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा था। इसी तरह वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ के भीतर विकसित देशों का प्रभुत्व है तथा अविकसित व विकासशील राष्ट्रों की स्थिति उचित नहीं है। अत: सभी की भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
राष्ट्र संघ के भीतर फ्राँस का बोलबाला था, जिसे फ्राँस के विदेश मंत्रालय के रूप में जाना जाता था। इसी तरह वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ पर सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी देशों चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, फ्राँस, रूस, यूनाइटेड किंगडम का व्यापक प्रभाव है। अत: इसे और अधिक लोकतांत्रिक बनाया जाना चाहिये।
राष्ट्र संघ की विफलता में राष्ट्र संघ की अहस्तक्षेप की नीति भी एक प्रमुख कारण थी जिसके अनुसार राष्ट्र संघ किसी भी बड़े राष्ट्र के मामले में तटस्थता की नीति अपना लेता था। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी प्रभावी भूमिका वैदेशिक संबंधों में निभा रहा है लेकिन फिर भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिन पर संयुक्त राष्ट्र संघ अधिक प्रभावी भूमिका निभाकर वैश्विक सहयोग को बढ़ा सकता है, जैसे- दक्षिण चीन सागर विवाद, उत्तर कोरिया विवाद आदि।
स्पष्ट है कि राष्ट्र संघ की असफलता से सीख लेते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी कार्यप्रणाली तथा सांगठनिक क्षमता में परिवर्तन के माध्यम से वर्तमान में उन नकारात्मक परिणामों से बच सकता है जिन्हें राष्ट्र संघ ने 20वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में देखा था।