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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    सरकार को सार्वभौमिक पहुँच की दुविधा के साथ चयन की स्वतंत्रता को अवश्य संतुलित करना चाहिये। नेट न्यूट्रैलिटी की बहस के संदर्भ में चर्चा कीजिये।

    09 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    नेट न्यूट्रैलिटी का उल्लंघन कैसे सार्वभौमिक पहुँच को एवं चयन की स्वतंत्रता को बाधित करता है? इसे बताना है।

    हल करने का दृष्टिकोण

    सर्वप्रथम नेट न्यूट्रैलिटी को स्पष्ट कीजिये।

    नेट न्यूट्रैलिटी का उल्लंघन सार्वभौमिक पहुँच एवं चयन की स्वतंत्रता को कैसे बाधित करता है? इसे स्पष्ट कीजिये।

    सरकार कैसे इसमें संतुलन लाए, इसे बताइये।

    अंत में निष्कर्ष लिखिये।

    नेट न्यूट्रैलिटी एक बुनियादी सिद्धांत है। इसके तहत माना जाता है कि इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों को इंटरनेट पर मौजूद सभी डेटा को समान दर्जा देना चाहिये। उन्हें न तो किसी सेवा को ब्लॉक करना चाहिये और न ही उसकी स्पीड स्लो (slow) करनी चाहिये। फेसबुक के ‘प्री बेसिक’ एवं एयरटेल के ‘ज़ीरो प्लान’ के माध्यम से नेट न्यूट्रैलिटी पर बहस की शुरुआत हुई।

    वस्तुत: नेट न्यूट्रैलिटी सिद्धांत का उल्लंघन सार्वभौमिक पहुँच के अधिकार एवं चयन की स्वतंत्रता जैसे मूल्यों का उल्लंघन करता है। आज डिजिटलीकरण के युग में इंटरनेट सूचना प्राप्त करने तथा ज्ञान बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। ऐसे में डाटा के साथ भेदभाव या किसी सेवा की स्पीड स्लो करना या ब्लॉक करना व्यक्ति की सार्वभौमिक पहुँच को बाधित करता है। संयुक्त राष्ट्र ने इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मानवीय अधिकार माना है तथा भारत में ऐसी घोषणा करने वाला केरल पहला राज्य हैै।

    इंटरनेट पर कुछ सेवाओं को नि:शुल्क प्रदान करना व्यक्ति के निष्पक्ष दृष्टिकोण के विकास में बाधक है। इस स्थिति में किसी खास सूचाना तक उपयोगकर्त्ताओं की पहुँच सुनिश्चित कर किसी खास विचारधारा या उद्देश्य के पक्ष में जनमत का निर्माण किया जा सकता है। इससे किसी खास उत्पाद के बारे में सूचनाएँ पहुँचाकर अन्य उत्पादों की बाज़ार में उपस्थिति को कमज़ोर किया जा सकता है। यह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश के लिये प्रतिकूल है।

    सरकार को इसमें संतुलन हेतु निम्नलिखित प्रयास करना चाहिये:

    • सरकार को इंटरनेट की सार्वभौमिक पहुँच को सुनिश्चित करना चाहिये तथा इसके माध्यम से चयन की स्वतंत्रता उपयोगकर्त्ताओं पर छोड़ देनी चाहिये।
    • इसमें इंटरनेट सेवा प्रदाताओं का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिये।
    • राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता तथा सामाजिक सौहार्द्र को नुकसान पहुँचाने वाली सूचनाओं को ही ब्लॉक करने का अधिकार होना चाहिये।
    • सरकार को ज़्यादा-से-ज़्यादा लोगों तक इंटरनेट की पहुँच प्रदान करने के लिये किफायती एवं वहनीय ब्राडबैंड उपलब्ध कराने पर ज़ोर देना चाहिये, न कि किसी सेवा को नि:शुल्क तथा किसी सेवा के लिये ज़्यादा शुल्क लेने की अनुमति देनी चाहिये।
    • इस संदर्भ में ‘ट्राई’ ने अपनी सिफारिश में कहा है कि सार्वभौमिक किफायती एवं स्तरीय ब्रांडबैंड की सुविधा पाने का सभी को समान अधिकार है। इंटरनेट एक खुला मंच है, जिसमें न तो किसी को प्राथमिकता दी जा सकती है और न ही किसी के साथ भेदभाव किया जा सकता है।

    निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि इंटरनेट सेवा प्रदाता को स्पीड एवं लागत के आधार पर ऑनलाइन सामग्री तक पहुँच बनाने में किसी भी प्रकार के भेदभाव की अनुमति नहीं होनी चाहिये। यह नेट न्यूट्रैलिटी के मूल भावना के अनुरूप होगा तथा उपयोगकर्त्ताओं के सार्वभौमिक पहुँच एवं चयन की स्वतंत्रता को भी सुनिश्चित करेगा।

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