व्याख्या कीजिये:
संभवत: पहचानती नहीं हो और न पहचानना ही स्वाभाविक है क्योंकि मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ जिसे तुम पहचानती रही हो। दूसरा व्यक्ति हूँ, और सच कहूँ तो वह व्यक्ति हूँ जिसे मैं स्वयं नहीं पहचानता हूँ।
07 Dec, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यसंदर्भ व प्रसंग: प्रस्तुत गद्यांश हिंदी के सर्वश्रेष्ठ स्वातंत्र्योत्तर नाटककार मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ से उद्धृत है। ये पंक्तियाँ प्रियंगुमंजरी व मल्लिका के बीच हो रही बातचीत के दौरान प्रियंगुमंजरी द्वारा कही गई हैं।
व्याख्या: प्रियंगुमंजरी राजनीति के प्रति कालिदास की उदासीनता के संदर्भ में मल्लिका से कहती है कि राजनीति और साहित्य नितांत भिन्न चीजें हैं। राजनीति प्रत्येक क्षण सावधानी और जागरूकता की मांग करती है। इसमें जरा-सी भी चूक राजनीतिक पतन की ओर ले जा सकता है।
विशेष: