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प्रश्न :
व्याख्या कीजिये:
संभवत: पहचानती नहीं हो और न पहचानना ही स्वाभाविक है क्योंकि मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ जिसे तुम पहचानती रही हो। दूसरा व्यक्ति हूँ, और सच कहूँ तो वह व्यक्ति हूँ जिसे मैं स्वयं नहीं पहचानता हूँ।
07 Dec, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
संदर्भ व प्रसंग: प्रस्तुत गद्यांश हिंदी के सर्वश्रेष्ठ स्वातंत्र्योत्तर नाटककार मोहन राकेश के प्रसिद्ध नाटक ‘आषाढ़ का एक दिन’ से उद्धृत है। ये पंक्तियाँ प्रियंगुमंजरी व मल्लिका के बीच हो रही बातचीत के दौरान प्रियंगुमंजरी द्वारा कही गई हैं।
व्याख्या: प्रियंगुमंजरी राजनीति के प्रति कालिदास की उदासीनता के संदर्भ में मल्लिका से कहती है कि राजनीति और साहित्य नितांत भिन्न चीजें हैं। राजनीति प्रत्येक क्षण सावधानी और जागरूकता की मांग करती है। इसमें जरा-सी भी चूक राजनीतिक पतन की ओर ले जा सकता है।
विशेष:
- ‘आषाढ़ का एक दिन’ नाटक के माध्यम से मोहन राकेश के रचना-लक्ष्य का एक महत्त्वपूर्ण अनुषंग सत्ता एवं राजनीति के संवेदनहीन चरित्र का भी चित्रण करना है। जिसे सत्ता की प्रतिनिधि चरित्र प्रियंगुमंजरी द्वारा कहे गए इन पंक्तियों के माध्यम से वे सूक्ष्मता के साथ प्रकट कर रहे हैं।
- साहित्य संवेदना को प्रश्रय देता है। साहित्य से राजनीति की तुलना राजनीति के मानवीय संबंधों के प्रति यांत्रिक और अनुभूतिविहीन दृष्टिकोण को तीक्ष्ण रूप में उजागर कर देता है।
- ये पंक्तियाँ समकालीन समय में भी अत्यधिक प्रासंगिक हैं। राजनीतिक जटिलताएँ आज के समय में कहीं अधिक है।
- मोहन राकेश की रंगदृष्टि के अनुरूप ये पंक्तियाँ नाट्य-संवाद की दृष्टि से उपयुक्त हैं।
- राजनीति के संबंध में ऐसा ही दृष्टिकोण ‘स्कंदगुप्त’ नाटक में भी दिखाई देता है।
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