निजी अस्पतालों के विषय में लोगों की आम धारणा सामान्यत: यह बनती जा रही है कि-
निजी अस्पताल अपने पेशागत नैतिक मूल्यों को भूल चुके हैं तथा आर्थिक लाभ के लिये उनके द्वारा अपनाए जा रहे अनैतिक एवं अनुचित तौर-तरीके आपराधिक कृत्य बनते जा रहे हैं।
निजी अस्पतालों की मनमानी एवं अमानवीय व्यवहारों के लिये प्रभावी नियम-कानूनों के साथ-साथ सक्षम नियामक संस्थाओं का अभाव ज़िम्मेदार है।
आप स्वास्थ्य विभाग में प्रधान सचिव के पद पर कार्यरत हैं। हाल के दिनों में, समाचार की सुर्खियाँ बन रही मेडिकल पेशे को शर्मशार करने वाली शिकायतों एवं इस संबंध में लोगों की उपरोक्त धारणा के आलोक में आप क्या सुधारात्मक कदम उठाएंगे? (250 शब्द)
05 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 केस स्टडीज़
प्रश्न विच्छेद प्रश्न स्वास्थ्य सचिव के रूप में निजी अस्पतालों के अमानवीय कृत्यों और लापरवाहियों से जुड़े हालिया मामलों के लिये किये जा सकने वाले उपायों से संबंधित है। हल करने का दृष्टिकोण निजी अस्पतालों द्वारा रोगियों के प्रति की जाने वाली अमानवीयता और लापरवाही से जुड़े मामलों का उल्लेख करें। इस स्थिति के पीछे के कारणों की चर्चा करें। ऐसी स्थितियों से निपटने के लिये सुधारात्मक उपाय सुझाएँ। |
देश में सार्वजनिक चिकित्सा व्यवस्था की बदहाल स्थिति लोगों को निजी चिकित्सकों और अस्पतालों की शरण में जाने को मजबूर करती है। निजी अस्पतालों की मनमानी से पूरा देश भली-भाँति परिचित है। इनका एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना है और जनता की सेवा से इनका कोई सरोकार नहीं है।
ये अस्पताल सामान्य रोगों के लिये भी अत्यधिक महँगी दवाइयाँ, अनावश्यक जाँच, गैर-ज़रूरी होने पर भी सर्जरी तथा आई.सी.यू (ICU) में रोगी को भर्ती कर एक मोटी रकम वसूलने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
इतना ही नहीं कई बार तो ये अस्पताल इतने घृणित अमानवीय कार्य करते हैं जिससे पूरी मानवता शर्मसार हो जाती है। गैर-कानूनी रूप से अंग प्रत्यारोपण, रोगी के मृत होने पर भी बिल बनाने के लिये उसे एडमिट करना तथा कई बार थोड़े पैसों की कमी के कारण रोगी के इलाज़ से साफ इनकार कर देना। निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि चिकित्सा देश में आज एक ऐसा गोरखधंधा बना गया है जिसमें आम जनता अपनी जमा पूंजी लुटाकर भी अच्छा स्वास्थ्य नहीं प्राप्त कर पा रही है।
इस बदहाल स्थिति के लिये हम निम्नलिखित कारणों को ज़िम्मेदार मान सकते हैं:
सुधारात्मक उपाय:
सबसे बढ़कर यह समझने की आवश्यकता है कि चिकित्सा महज एक व्यवसाय नहीं बल्कि मानवता की सेवा है। चिकित्सकों को भगवान का रूप माना जाता है। अत: चिकित्सकों में प्रारंभ से ही चिकित्सकीय नैतिकता के अनुरूप अभिवृत्तिक बदलाव के प्रयास किये जाने चाहिये। इस अभिवृत्ति को चिकित्सीय शिक्षा के अभिन्न अंग के रूप में स्थापित किये जाने की आवश्यकता है।