20वीं शताब्दी की शुरुआत में अतिवादी प्रवृत्तियों के उदय के पीछे निहित कारणों की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
उग्रवाद के उदय के कारणों की चर्चा करनी है।
हल करने का दृष्टिकोण
भूमिका लिखिये।
उग्रवाद के उदय के कारणों को स्पष्ट कीजिये।
निष्कर्ष दीजिये।
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कॉन्ग्रेस की स्थापना के समय उदारवादियों ने अपने उदार साध्य व साधन के माध्यम से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को दिशा प्रदान की। 20वीं शताब्दी के आरंभ में उपस्थित परिस्थितियों में जब उदारवादी नेता राष्ट्रीय आंदोलन को आगे नहीं ले जा पा रहे थे तब उपजे असंतोष की दशा में अतिवादियों का उदय हुआ। उदारवाद से उग्रवाद की ओर स्वतंत्रता आंदोलन के गतिमान होने के संदर्भ में निम्नलिखित कारणों का अवलोकन किया जा सकता है:
- भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के आंरभिक नेताओं ने अंग्रेज़ों की शोषक आर्थिक नीतियों को उजागर करने का कार्य किया तथा भारत की दरिद्रता का मूल कारण अंग्रेज़ी राज को सिद्ध किया। इस संदर्भ में उदारवादी नेताओं ने भेदभावपूर्ण आयात-निर्यात की नीति, शोषणपूर्ण भू-राजस्व नीति, उच्च पदों पर नियुक्ति के लिये भारतीयों को अयोग्य मानने की नीति तथा धन के निष्कासन जैसे मुद्दों को जनमानस के समक्ष प्रस्तुत किया। उग्रवादी नेताओं ने इन्हीं मुद्दों को लेकर ब्रिटिश साम्राज्य की उग्र आलोचना की तथा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को आक्रमकता प्रदान करने का कार्य किया।
- नई पीढ़ी के इन नेताओं के उदय के कारणों में, भारत में बढ़ता पश्चिमीकरण भी था। बढ़ते पश्चिमीकरण के विरुद्ध प्रतिक्रियास्वरूप जब बंकिमचन्द्र, विवेकानंद, दयानंद सरस्वती जैसे चिंतकों ने श्वेत जातियों की ब्राउन जातियों से वरिष्ठता की भावना को चुनौती प्रस्तुत की तो भारतीयों में आत्मविश्वास का प्रसार हुआ तथा यह राजनीतिक संदेश ‘भारत-भारतीयों के लिये है’ के माध्यम से उग्रवादी नेताओं ने जनता को ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में खड़ा कर दिया।
- उग्रवादी नेताओं की उत्पत्ति के पीछे कॉन्ग्रेस के आरंभिक पंद्रह-बीस वर्षों की याचना, प्रार्थना तथा प्रतिवाद (Petition, Prayer and Protest) करने की नीति भी थी। नवीन पीढ़ी के नेता उदारवादियों के संवैधानिक ढंगों से स्वशासन प्राप्त करने के आलोचक बन गए थे।
- 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध व 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में भारत से बाहर घटित वैश्विक घटनाओं ने उग्रवादी विचारधारा को मज़बूती प्रदान की। इटली-अबीसीनिया युद्ध में इटली की पराजय, रूस-जापान युद्ध में रूस की हार, अफ्रीका का बोअर युद्ध तथा मिस्र, ईरान, तुर्की व रूस में राष्ट्रवादी आंदोलन का भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा, जिससे यूरोप की अजेयता का मिथक टूटा।
- इसके अतिरिक्त लॉर्ड कर्ज़न की प्रतिक्रियावादी नीतियों ने भी उग्रवादी विचारधारा के प्रसार का कार्य किया। कर्ज़न ने भारतीय विश्वविद्यालय एक्ट के माध्यम से उच्च शिक्षा पर ब्रिटिश नियंत्रण बढ़ा दिया, समाचार पत्रों (प्रेस) पर प्रतिबंध लगाया, उच्च सरकारी पदों पर भारतीयो को अयोग्य घोषित किया तथा बंगाल विभाजन के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम एकता में विद्वेष पैदा करने का कार्य किया। ताकि राष्ट्रीयता की भावना को कुचला जा सके लेकिन इन्हीं प्रतिक्रियावादी नीतियों ने उग्रवादियों के नेतृत्व में भारतीय आंदोलन को व्यापक आधार प्रदान किया।
स्पष्ट है कि उदारवाद से उग्रवाद का यह विकास प्रक्रियात्मक विकास माना जाना चाहिये। इसमें भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की पुरानी अभिव्यक्तियों को अधिक उग्र भाषा में व्यक्त किया गया तथा व्यापक जनाधार को सम्मिलित किया गया।