संस्मरण ‘स्मृति की रेखाएँ’ पर टिप्पणी लिखिये।
04 Dec, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यअपनी कविताओं में वैयक्तिक वेदनानुभूति एवं रहस्यात्मकता के लिए जानी जाने वाली महादेवी वर्मा अपने गद्य-साहित्य में सामाजिकता की ओर उन्मुख दिखाई देती हैं जिसका एक सशक्त प्रमाण उनका गद्य-संग्रह ‘स्मृति की रेखाएँ’ है। ‘स्मृति की रेखाएँ’ को कुछ विद्वानों ने संस्मरण विधा के अंतर्गत रखा है, कुछ ने रेखाचित्र के अंतर्गत, कुछ ने इसे संस्मरणात्मक रेखाचित्र कहा है, तो कुछ ने रेखाचित्रात्मक संस्मरण। चाहे इसकी विधा कुछ भी हो, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह गद्यकृति हिंदी गद्य-साहित्य की अमूल्य निधि है। इसके गुंगिया, बिबिया, ठकुरी बाबा, भक्तिन आदि संस्मरणों में जिस सामाजिक संलग्नता, आमजन के संघर्षों, दुख-सुखों में सहभागिता, आत्मीयता तथा करुणा का परिचय मिलता है, वह अप्रतिम है।
महादेवी वर्मा ने ‘स्मृति की रेखाएँ’ में उत्कृष्ट गद्य-शैली का भी निदर्शन प्रस्तुत किया है। शब्दों के नपे-तुले एवं सटीक प्रयोग में वे अत्यन्त कुशल हैं। ध्यातव्य है कि महादेवी वर्मा कवयित्री होने के साथ-साथ चित्रकार भी हैं। किन रेखाओं में किन रंगों को डाला जाए, यह उन्हें खूब मालूम है। चित्र को रंगीन बनाने में वे अपनी काव्यात्मक प्रतिभा का उपयोग करती हैं तथा बिंबात्मक बनाने में अलंकार का। उनके गद्य का एक उदाहरण प्रस्तुत है-
‘गुँगिया ने उस मैले-फटे कागज़ के टुकड़े को अस्थिशेष उँगलियों में दबाकर पंजर जैसे हृदय पर रखकर आँखें मूँद लीं; पर झुर्रियों में सिमटी हुई पलकों के कोनों से बहने वाली आँसू की पतली धार उसके कानों को छूकर मैले और तेल से चीकट तकिये को धोने लगी।’