जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणामों की चर्चा करते हुए इसके समाधान के उपायों को बताइए।
04 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 3 पर्यावरण
प्रश्न विच्छेद • जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणाम तथा समाधान के उपाय। हल करने का दृष्टिकोण • जलवायु परिवर्तन का संक्षिप्त परिचय दीजिये। • जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणामों की चर्चा कीजिये। • जलवायु परिवर्तन के समाधान हेतु उपायों को लिखिये। |
जलवायु एक लंबी अवधि के औसत मौसम की स्थितियों का संक्षिप्त विवरण है। भौतिक तथा मानवीय क्रिया की बदौलत जलवायु परिवर्तन होता है। औद्योगिक क्रांति के बाद से विभिन्न मानवीय गतिविधियों के कारण वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण में लगातार वृद्धि होने से पृथ्वी की सतह के तापमान में नियमित वृद्धि हो रही है। पृथ्वी के निरंतर गर्म होने से संपूर्ण मानव जाति के अस्तित्व पर ही सवाल खड़े हो गए हैं।
संपूर्ण विश्व में जलवायु परिवर्तन के भयानक परिणाम दृष्टिगत होने लगे हैं। विश्व भर के वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के संभावित परिणामों को जानने के लिये निरंतर कार्य कर रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के कुछ संभावित परिणाम निम्नलिखित हैं:
समुद्र के जल स्तर में वृद्धि: भूमंडलीय तापक्रम में वृद्धि के कारण 21वीं सदी के अंत तक सागरीय जल स्तर में 2 से 3 मीटर की वृद्धि होगी। इससे विश्व की लगभग आधी आबादी प्रभावित होगी। मालदीव जैसे कई द्वीप डूब जाएंगे। नदी डेल्टा के डूब जाने से कृषि योग्य भूमि का विनाश होगा, साथ ही मीठे पानी की समस्या भी उत्पन्न होगी।
वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन: तापमान में वृद्धि से वर्षा की अनिश्चितता एवं तीव्रता में वृद्धि हो रही है, इस कारण बाढ़ एवं सूखे की तीव्रता में भी वृद्धि हो रही है। उच्च अक्षांशों में अधिक वर्षा होने से यहाँ बाढ़, भूस्खलन, मृदा अपरदन जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी।
फसल प्रतिरूप एवं उपज पर प्रभाव: तापमान एवं वर्षा में परिवर्तन फसल प्रतिरूप और उपज को प्रभावित कर रहा है। मानसूनी क्षेत्र में वर्षा में वृद्धि होने से बाढ़, भूस्खलन तथा भूमि अपरदन की समस्या उत्पन्न होगी जिसका सीधा प्रभाव उपज पर पड़ेगा। उच्च उपज वाले क्षेत्र प्रभावित होंगे, जबकि उच्च अक्षांश वाले क्षेत्रों में जलवायु गेहूँ, चावल जैसे खाद्यान्न फसलों के लिये अनुकूल हो जाएगी। इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंध भी प्रभावित होगा।
मरुस्थलों का विस्तार: उच्च तापमान एवं अधिक वाष्पीकरण के परिणामस्वरूप मरुस्थलों का विस्तार होगा तथा मरुस्थलों में और अधिक मरुस्थलीकरण स्थिति उत्पन्न होगी।
जैवविविधता पर प्रभाव: जलवायु में अचानक और तीव्र परिवर्तन के कारण कई प्रजातियों अनुकूलन के अभाव में मर जाएंगी। इससे जैवविविधता में कमी आएगी, परिणामस्वरूप पारिस्थितिक असंतुलन का खतरा बढ़ेगा।
मानव स्वास्थ्य पर असर: तापमान में वृद्धि से श्वास तथा हृदय संबंधी बीमारियों में वृद्धि होगी। उष्ण कटिबंधीय देशों में मलेरिया, डेंगू, मेनिन्जाइटिस के प्रकोप में वृद्धि होगी। साथ ही, इन बीमारियों का विस्तार उच्च अक्षांशीय देशों में भी होगा।
जलवायु परिवर्तन का वीभत्स परिणाम 80 व 90 के दशक से दिखने लगा था। वर्तमान में भी वैश्विक उष्मन में हो रही लगातार वृद्धि हमारी प्रतिबद्धता की पोल खोलता है। वैज्ञनिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिये ग्रीनहाउस गैसों को कम करना उत्तम समाधान होगा। इसके लिये कोयला व पेट्रोलियम आधारित ऊर्जा की बजाय ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का विकास करना होगा। व्यक्तिगत रूप से ऊर्जा का संरक्षण करना होगा। विकसित राष्ट्रों को चाहिये कि वे विकासशील और गरीब राष्ट्रों की आर्थिक व तकनीकी मदद करें और खुद भी हानिकारक गैसों का उत्सर्जन कम करें। जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये आवश्यक है कि विश्व के सभी राष्ट्रों को आर्थिक, राजनीतिक और सामरिक लाभ की नीति से परे हटकर सामूहिक प्रयास करना होगा। यद्यपि वर्ष 1992 में ‘विश्व पृथ्वी सम्मेलन तथा 1997 में ‘क्योटो संधि’ कारगर पहलें रही हैं किंतु वर्तमान में अमेरिका का पेरिस संधि से अलग होना चिंता का विषय है।