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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    जेट प्रवाह के विकास चक्र की चर्चा करते हुए स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर इसके प्रभाव को स्पष्ट कीजिये।

    03 Dec, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 भूगोल

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    जेट प्रवाह का विकास चक्र तथा स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर उसका प्रभाव।

    हल करने का दृष्टिकोण

    जेट प्रवाह का सामान्य परिचय दीजिये।

    जेट प्रवाह के विकास चक्र की चर्चा कीजिये।

    जेट प्रवाह का स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर प्रभाव का उल्लेख करते हुए निष्कर्ष लिखिये।

    क्षोभ सीमा में तीव्र गति से चलने वाली परिध्रुवीय विसर्पी वायु प्रणाली को जेट प्रवाह कहते हैं। यह सामान्यत: पश्चिम से पूर्व की ओर संकरी पट्टी में प्रवाहित होती है। इसकी लंबाई हज़ारों किलोमीटर तथा चौड़ाई 150 से 450 किलोमीटर तक होती है। जेट प्रवाह में ऋतु के अनुसार परिवर्तन होता है। शीत ऋतु में यह भूमध्यरेखा की ओर तथा ग्रीष्म ऋतु में ध्रुवों की ओर विस्थापित होती है।

    जेट प्रवाह का उद्भव एवं विकास एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसका संबंध भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर ताप प्रवणता तथा ध्रुव के निकट भूतल पर उच्च वायुदाब के कारण उत्पन्न परिध्रुवीय भँवर की अवस्था से है। जेट प्रवाह के उद्भव एवं विकास को चार अवस्थाओं में वर्गीकृत किया गया है:

    प्रथम अवस्था: इस अवस्था में जेट प्रवाह ध्रुवों के निकट सामान्यत: पश्चिम से पूर्व की ओर होता है। इस समय रॉजबी तरंगों का अधिक विस्तार नहीं होने के कारण इसका मार्ग अधिक विसर्पी नहीं होता है। इसके उत्तर में ध्रुवीय ठंडी वायु तथा दक्षिण में गर्म पछुआ वायु होती है।

    द्वितीय अवस्था: रॉजबी तरंगों का विकास प्रारंभ हो जाने के कारण इस अवस्था में जेट प्रवाह की तरंगों के आयाम में वृद्धि होने लगती है जिससे जेट प्रवाह भूमध्यरेखा की ओर स्थानांतरित होने लगता है। इस समय गर्म उष्णकटिबंधीय वायु ध्रुवों की ओर तथा ठंडी ध्रुवीय वायु भूमध्यरेखा की ओर बढ़ने लगती है।

    तृतीय अवस्था: जेट तरंगों के आयाम अत्यधिक हो जाने से जेट प्रवाह भूमध्यरेखा के काफी निकट पहुँच जाता है। इसकी वजह से गर्म उष्णकटिबंधीय वायुराशि का ध्रुव की ओर तथा ठंडी ध्रुवीय वायुराशियों का भूमध्यरेखा की ओर विस्थापन और प्रबल हो जाता है। इस समय पूर्व-पश्चिम दिशा में तापमान तथा वायुदाब में विषमता और भी अधिक हो जाती है।

    चतुर्थ अवस्था: इस अवस्था में जेट प्रवाह का पूर्ण विकास हो जाता है। जेट तरंगों का आयाम इतना अधिक हो जाता है कि मूल धारा विच्छिन्न होकर चन्द्राकार मार्ग में प्रवाहित होने लगती है, जिससे चंद्राकार वायु प्रवाह प्रणाली की कई धाराएँ विकसित हो जाती हैं। जेट प्रवाह के दक्षिण में निम्न वायुभार वाली चक्रवातीय धाराएँ तथा उत्तर में उच्च वायुभार वाली प्रतिचक्रवातीय धाराएँ विकसित हो जाती हैं, जो पश्चिम-पूर्व दिशा में जेट प्रवाह में बाधा उत्पन्न करती हैं।

    जेट प्रवाह की सक्रियता का स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जेट प्रवाह की सक्रियता शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को अधिक शक्तिशाली बना देती है। जेट प्रवाह का पूर्ण विकास धरातलीय चक्रवातों एवं प्रतिचक्रवातों का स्वरूप परिवर्तित कर देता है, जिससे स्थानीय मौसम व्यापक रूप से प्रभावित होता है। वे क्षेत्र जो जेट प्रवाह के नीचे स्थित होते हैं वहाँ चक्रवातों का अधिक विकास होता है, परिणामस्वरूप ये क्षेत्र अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं। ध्यातव्य है कि अभी तक जेट प्रवाह का स्थानीय एवं प्रादेशिक मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव की स्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं है, इस पर अनुसंधान जारी है।

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