जलीय चक्र से आशय स्पष्ट करते हुए उसकी क्रियाविधि को स्पष्ट कीजिये।
02 Dec, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल
प्रश्न विच्छेद जलीय चक्र की क्रियाविधि की चर्चा करनी है। हल करने का दृष्टिकोण जल चक्र का आशय स्पष्ट कीजिये। जलीय चक्र की क्रियाविधि का स्पष्ट उल्लेख कीजिये। |
जल चक्र ऐसी प्रक्रिया है जिसमें जल अपना रूप परिवर्तित कर पृथ्वी पर मौजूद जल के एक भंडार से दूसरे भंडार में गति करता रहता है। इस प्रक्रिया में जल की हानि नहीं होती है बल्कि जल के रूप और स्थान में परिवर्तन होता रहता है। जल चक्र के अंतर्गत महासागरों, नदियों, झीलों आदि से जल वाष्पीकृत होकर जलवाष्प के रूप में ऊपर उठता है। जलवाष्प के संघनन से बादलों का निर्माण होता है और फिर वर्षा, बर्फ या ओलों के रूप में वापस पृथ्वी पर आ जाता है। जल चक्र की क्रियाविधि निम्नलिखित चरणों में संपन्न होती है:
वाष्पीकरण: सौर विकिरण द्वारा पृथ्वी पर मौजूद जल भंडारों से जल वाष्पीकृत होकर जलवाष्प में बदल जाता है। वायु का तापमान और उसमें उपस्थित आर्द्रता की मात्रा वाष्पीकरण की मात्रा एवं दर को प्रभावित करती है। लगभग 84% वाष्पीकरण महासागरों से होता है।
वाष्पोत्सर्जन: पेड़-पौधों द्वारा अपने जड़ों के माध्यम से मिट्टी से जल का अवशोषण करना और फिर पत्तियों द्वारा इस जल को वायुमंडल में छोड़ देना ही वाष्पोत्सर्जन कहलाता है। इस प्रक्रिया से मृदा जल का ह्रास होता है। वाष्पोत्सर्जन की मात्रा वनस्पति के घनत्व के अनुपात में होती है।
वर्षण: वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन क्रिया के फलस्वरूप वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प संघनित होकर बादल का निर्माण करता है और फिर वर्षण के माध्यम से वापस सतह पर आ जाता हैं।
अंत: स्पंदन: वर्षा के जल का कुछ भाग भूमि द्वारा सोख लिया जाता है। इस प्रकार जल का कुछ भाग भूमि के अंदर चला जाता है। इसी प्रक्रिया को अंत: स्पंदन कहते हैं।
धरातलीय प्रवाह: वर्षा जल की बड़ी मात्रा भूमि के ढाल के अनुसार विभिन्न दिशाओं में प्रवाहित होने लगती है, जिसे धरातलीय प्रवाह कहते हैं। यह धरातलीय प्रवाह नदी, नाले, झील या फिर महासागरों में जाकर मिल जाता है।