कवि सुंदरदास के बारे में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
30 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर: निर्गुण संत कवियों में दादूदयाल के शिष्य सुंदरदास सर्वाधिक शास्त्रज्ञ एवं सुशिक्षित थे। यही कारण है कि उनकी कविता कलात्मकता से युक्त है और उनकी भाषा परिमार्जित है। सुंदरदास ने पदों एवं दोहों के साथ-साथ कवित्त एवं सवैयों की भी रचना की है। उनकी काव्यभाषा में अलंकारोें का बहुत प्रयोग है। उनका सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ ‘सुंदरविलास’ है।
सुंदरदास योग मार्ग के समर्थक और अद्वैत वेदांत पर पूर्ण आस्था रखने वाले थे। इन्होंने अपने काव्य में सांख्य और अद्वैतवाद का निरूपण विशद रूप में किया है। संत होते हुए भी ये हास्य-रस के विशेष प्रेमी थे जिससे इनकी वेदांत की गंभीरता मनोरंजन में परिणत हो जाती है। निर्गुण साधना एवं भक्ति के अतिरिक्त उन्होंने सामाजिक व्यवहार, लोकगीत एवं आचार व्यवहारों पर भी उक्तियाँ कहीं हैं। अपने काव्य में उन्होंने लोक-धर्म और लोक-मर्यादा की उपेक्षा नहीं की है। शृंगार रस की रचनाओं के वे कट्टर विरोधी थे। उदाहरण के लिये-
‘‘ज्यों रोगी मिष्टान पाइ रोगहि बिस्तारै।
सुंदर यह गति होइ जुतो रसिकप्रिया धारै।।’’