‘उग्रसुधारवाद पूंजीवादी संकट के विरुद्ध भूगोल में सामाजिक क्रांति लाने का प्रयास था।’ स्पष्ट कीजिये।
25 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहासभूगोल में उग्र सुधारवाद की मांग 1970 के दशक में मात्रात्मक क्रांति और प्रत्यक्षवाद के प्रतिक्रिया स्वरूप उठी। मात्रात्मक क्रांति एवं प्रत्यक्षवाद द्वारा भूगोल के अवस्थितिजन्य विश्लेषण तथा स्थानिक विज्ञान में परिवर्तन करने पर ज़ोर का इन्हाेंने विरोध किया। ये पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में ही असमानताओं की गहरी जड़ें देखते थे, अत: इन्होंने सामुदायिक नियंत्रण मॉडल की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इनका मानना था कि मात्र आय के पुनर्वितरण और टैक्स लगाने से गरीबी समाप्त नहीं होगी बल्कि इसके लिये वातावरण रचना में विकल्पों द्वारा अतिवाद/उग्र सुधारवाद आवश्यक है।
उग्र सुधारवाद आंदोलन का आरंभ 1960 के दशक के अंतिम भाग में संयुक्त राज्य अमेरिका में घटित तीन राजनीतिक समस्याओं, यथा- वियतनाम युद्ध, नागरिकों के अधिकार तथा नगरों की उपेक्षित बस्तियों में गरीबी व असमानता से उत्पन्न त्रासदी से हुआ। उग्र सुधारवाद के मुख्य समर्थक पीट थे, जो सामाजिक असमानता की मुख्य वजह पूंजीवादी व्यवस्था को मानते थे। पीट मुख्यत: सामाजिक हित की समस्याओं पर ध्यान केंद्रित कर समाज में से असमानता, प्रजातीयता, लिंग भेद, अपराध, रंगभेद जैसी कुरीतियों को उखाड़ पेंकने के पक्षपाती थे। 1960 के दशक के अंत में घटित घटनाओं, जैसे- पश्चिमी यूरोप के बड़े नगरों में आगजनी, पेरिस में कामगारों का आंदोलन, विद्यार्थियों में असंतोष आदि ने भूगोल की क्षेत्र विज्ञान के रूप में निरर्थकता सिद्ध कर दी तथा भूगोल में अवस्थापनिक विश्लेषण की कमियाँ स्पष्ट हो गईं। इसी पृष्ठभूमि में विद्यार्थियों के एक समूह ने उग्र सुधारवाद की मांग उठाते हुए परांपरागत भूगोल को चुनौती दी। उग्र सुधारवादियों ने न केवल पश्चिमी जगत में व्याप्त सामाजिक असमानताओं पर लेख प्रकाशित किये बल्कि तीसरी दुनिया के देशों में व्याप्त बेराज़गारी, गरीबी, कुपोषण, विकासहीन स्थिति आदि पर भी लेख प्रकाशित किये। इन्होंने समाज के शोषित वर्ग के हितों के रक्षार्थ भूगोल में सामाजिक क्रांति लाने पर ज़ोर दिया ताकि पश्चिमी विश्व के पूंजीवादी संकट से बचा जा सके।