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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    एक व्यक्तिगत ईश्वर के प्रति निष्ठा भक्ति आंदोलन की मूल विशेषता थी। इसके औचित्य को प्रमाणित कीजिये। (150 शब्द)

    22 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहास

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • भक्ति आंदोलन के दौरान संतों द्वारा व्यक्तिगत ईश्वर के प्रति निष्ठा को प्रमाणित कीजिये।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • सर्वप्रथम भूमिका लिखिये।

    • व्यक्तिगत ईश्वर के प्रति निष्ठा के औचित्य पर चर्चा कीजिये।

    • निष्कर्ष दीजिये।

    मध्यकालीन भारतीय हिंदू समाज के धार्मिक जीवन में भक्ति आंदोलन के रूप में महत्त्वपूर्ण चेतना व जागृति का विकास हुआ। भक्ति काल में प्रत्येक सामाजिक, धार्मिक सुधारक संत के द्वारा समाज में किसी विशेष भगवान के प्रति भक्ति या आस्था का प्रचार -प्रसार किया गया जो इसे भक्ति आंदोलन की महत्त्वपूर्ण विशेषता बनाता है। यह भारत में बहुदेववाद की स्थापित पंरपरा से भिन्न था।

    भक्ति आन्दोलन का प्रसार:

    • भक्ति आंदोलन का आरंभ दक्षिण भारत में अलवारों व नयनारों से हुआ। अलवार विष्णु भक्त तथा नयनार शिव भक्त थे। इन्होंने ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत प्रेम और समर्पण को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया।
    • महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन को नामदेव व तुकाराम ने अधिक मुखरता प्रदान की तथा हरि के प्रति अदम्य प्रेम व समर्पण का उपदेश दिया। महाराष्ट्र में संत रामदास ने राम की पूजा को लोकप्रिय बनाने में योगदान दिया।
    • भारत के हिंदी भाषी प्रांतों में भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत रामानन्द थे जिन्होंने भगवान राम के स्वरूप में भक्ति भावना का प्रकटीकरण किया। रामानन्द ने बताया कि केवल राम के प्रति प्रेम व समर्पण के माध्यम से ही मुक्ति पाई जा सकती है।
    • तुलसीदास ने भगवान राम में आस्था प्रकट की तथा राम को निरपेक्ष सत्य (अंतिम सत्य) के रूप में स्थापित किया।
    • मीराबाई कृष्ण भक्ति की साकार प्रतिमा मानी जाती थीं।
    • संत सूरदास भी अपनी रचनाओं में कृष्ण के मोहक रूप तथा राधा की कथाओं का वर्णन करते थे।
    • इसके अतिरिक्त चैतन्य महाप्रभु ने श्रीकृष्ण की आराधना से भगवान के प्रति अदम्य प्रेमभाव का प्रकटीकरण किया है।

    स्पष्ट है कि मध्यकालीन भारत का भक्ति आंदोलन अपने व्यक्तिगत ईश्वर के प्रति निष्ठा के प्रकटीकरण के संदर्भ में अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है परंतु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इन संतों ने अन्य की उपेक्षा की या आलोचना की। इन्होंने केवल अपने आराध्य के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना को अभिव्यक्त किया।

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