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ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    इच्छामृत्यु के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले ने किस प्रकार अनुच्छेद 21 को पुनर्परिभाषित किया है? विवेचना कीजिये। (250 शब्द)

    18 Nov, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • इच्छामृत्यु के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों की विवेचना कीजिये।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • भूमिका लिखिये।

    • इच्छामृत्यु के संदर्भ में उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देश स्पष्ट कीजिये।

    • सम्मान से मृत्यु ने अनुच्छेद-21 को किस प्रकार पुनर्परिभाषित किया है?

    • निष्कर्ष दीजिये।

    प्रत्येक मनुष्य सम्मानित जीवन जीने की इच्छा रखता है तथा जीवन जीने के क्रम में मृत्यु को टालने का हरसंभव प्रयास करता है। लेकिन जब कोई मनुष्य किसी गंभीर बीमारी या दुर्घटना के कारण मरणासन्न स्थिति में पहुँच जाता है तब इस दर्दनाक, कष्टकारी व निष्क्रिय जीवन जीने का अंत करने की इच्छा प्रकट करता है लेकिन कानून इसकी अनुमति प्रदान नहीं करता। इस संदर्भ में अरुणा शानबाग का मामला सर्वाधिक चर्चित रहा जिनकी इच्छामृत्यु की मांग को उच्चतम न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया था। इसके बाद वर्ष 2018 में अरुणा शानबाग की मृत्यु के तीन वर्ष बाद उच्चतम न्यायालय ने भारत में सशर्त सम्मान से मृत्यु को अनुमति प्रदान कर दी है।

    सुप्रीम कोर्ट के हालिया ऐतिहासिक फैसले में पाँच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने अपने आदेश में कहा कि हर व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है और किसी भी व्यक्ति को इससे वंचित नहीं किया जा सकता। इस संबंध में उच्चतम न्यायालय ने पैसिव यूथेनेशिया व लिविंग विल को अनुमति प्रदान की है।

    उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति दीर्घकाल से कोमा में है तथा उस व्यक्ति के स्वस्थ होने की आशा समाप्त हो चुकी है तो मेडिकल बोर्ड की सिफारिश पर लाइफ सपोर्टिंग सिस्टम को हटाया जा सकता है। इस हेतु परिवार की अनुमति लेनी भी आवश्यक होगी। इसके अतिरिक्त, उच्चतम न्यायालय ने लिविंग विल की अनुमति भी प्रदान की है। लिविंग विल के माध्यम से मरीज़ स्वयं यह निर्देश दे सकता है कि उसके जीवन को वेंटिलेटर या आर्टिफिशियल सपोर्ट सिस्टम से न बचाया जाए। लिविंग विल के लिये भी मरीज़ के परिवार तथा विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम से अनुमति लेना अनिवार्य होगा।

    ध्यातव्य है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्राप्त मूल अधिकार प्रत्येक व्यक्ति को प्राण व दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करता है जिसे समय-समय पर उच्चतम न्यायालय द्वारा पुनर्परिभाषित किया जाता रहता है। इस संदर्भ में उच्चतम न्यायालय का हाल ही में लिया गया निर्णय, जिसमें सम्मान के साथ जीने के अधिकार सम्मान सहित मरने का अधिकार भी सम्मिलित कर दिया गया है। इसको पुनर्परिभाषित करने के साथ-साथ और व्यापकता प्रदान करता है।

    निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि उच्चतम न्यायालय के इच्छामृत्यु के संदर्भ में दिये गए दिशा-निर्देशों ने अनुच्छेद-21 को विस्तार प्रदान किया है जिसके माध्यम से भारत के प्रत्येक व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार सहित गरिमा के साथ मरने का अधिकार भी प्रदान कर दिया गया है।

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