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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हिंदी गद्य के विकास में बालकृष्ण भट्ट के योगदान पर प्रकाश डालिये।

    16 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    ‘हिंदी प्रदीप’ के संपादक बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु मंडल के सबसे वरिष्ठ सदस्य थे। भट्ट जी भारतेन्दु युग तथा द्विवेदी युग को जोड़ने वाले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने नाटक, उपन्यास, निबंध, आलोचना, पत्रकारिता, पुस्तक-समीक्षा आदि अनेक क्षेत्रों में एक साथ योगदान दिया है किंतु उनकी प्रतिभा मुख्यत: निबंधों में ही चमकी है।

    बालकृष्ण भट्ट का योगदान:

    • भट्ट जी ने यूँ तो भावात्मक, वर्णनात्मक, कथानक तथा विचारात्मक सभी प्रकार के निबंध लिखे हैं, किन्तु उनके विचारात्मक निबंध अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। इसीलिये इन्हें 17वीं शताब्दी के पश्चिमी निबंधकार जोसेफ एडीसन (जो बुद्धिप्रधान निबंध लिखने के लिये विख्यात था) के सादृश्य के आधार पर ‘हिंदी का एडीसन’ भी कहा जाता है। इनके निबंधों में उनके पाण्डित्य तथा लोक प्रचलित भाषा का अद्भुत समन्वय हुआ है।
      • भट्ट जी के प्रमुख निबंध हैं- ‘चंद्रोदय’, ‘एक अनोखा स्वप्न’, ‘प्रेम के बाग का सैलानी’, ‘साहित्य जन समूह के हृदय का विकास है’ आदि।
    • भट्ट जी ने अनेक नाटकों का भी प्रणयन किया है, जिनमें ‘कलिराज की सभा’, ‘चंद्रसेन’, ‘खेल’, ‘रेल का टिकट’, ‘बाल विवाह’ आदि प्रमुख हैं।
    • भट्ट जी ने ‘नूतन ब्रह्मचारी’ नामक एक उपन्यास भी लिखा
    • आलोचना के क्षेत्र में भी भट्ट जी का महत्त्वपूर्ण योगदान है। भारतेन्दु ने ‘नाटक’ नामक निबंध द्वारा सैद्धांतिक आलोचना की शुरुआत की थी तो भट्ट जी ने ‘हिंदी प्रदीप’ में लाला श्रीनिवासदास के नाटक ‘संयोगिता स्वयंवर’ की ‘सच्ची समालोचना’ नाम से व्यावहारिक आलोचना की जिसे हिंदी साहित्य की पहली व्यावहारिक आलोचना माना जाता है।
    • भट्ट जी ने कविताओं के स्थान पर गद्यात्मक लेखन को प्रधानता दी है, किंतु कहीं-कहीं इनके गद्यों में भी पद्यात्मकता आ गई है, जैसे- ‘‘आज हम इस जून एक ऊन दो के ऊपर सून वाली संख्या में प्रवेश कर रहे हैं।’’
    • भट्ट जी का भाषा संबंधी दृष्टिकोण भी गौर करने के लायक है। वे भाषायी शुद्धता के समर्थक नहीं थे। उनका मानना था कि भाषा का विकास विभिन्न भाषाओं के शब्दों के आदान-प्रदान से ही होता है।

    उनका प्रसिद्ध कथन है कि ‘‘बहुत से लोगों का मत है कि हम लिखने-पढ़ने की भाषा से यावनिक शब्दों को बीन-बीनकर अलग करते रहें। कलकत्ता और बंबई के कुछ पत्र ऐसा करने का कुछ यत्न भी कर रहे हैं, किंतु ऐसा करने से हमारी हिंदी बढ़ेगी नहीं, वरन दिन-दिन संकुचित होती जाएगी। भाषा के विस्तार का सदा यह क्रम रहा है कि किसी भी देश के शब्दों को हम अपनी भाषा में मिलाते जाएँ और उसे अपना करते रहें।’’

    कुल मिलाकर, भट्ट जी ने आधुनिक काल के हिंदी साहित्य का बहुत अधिक संवर्द्धन किया है। उनके निबंधों की सीमा यह है कि उनमें वह सुघड़ता व वह वैचारिकता नहीं है जो आगे चलकर शुक्ल जी के निबंधों में मिलती है। इसी प्रकार आलोचना के क्षेत्र में भी उनका कार्य महज एक शुरुआती प्रयास ही माना जा सकता है। फिर भी, नवजागरणकालीन संक्रमण के दौर में हिंदी साहित्य में गद्य की विविध विधाओं के प्रवर्तन तथा विकास में योगदान के लिये इनका प्रयास सराहनीय माना जाता है।

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