औपनिवेशिक काल के दौरान तिब्बत व अफगान के साथ अंग्रेज़ों का संघर्ष भारत की सीमाओं का विस्तार न होकर ब्रिटिश साम्राज्य के स्थायित्व की लालसा से अभिप्रेरित था। विश्लेषण कीजिये। (150 शब्द)
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• अंग्रेज़ों के वैदेशिक संबधों (तिब्बत व अफगान के संदर्भ में) को साम्राज्य के स्थायित्व के संदर्भ में विश्लेषित कीजिये।
हल करने का दृष्टिकोण
• सर्वप्रथम भूमिका लिखिये।
• तिब्बत तथा अफगानिस्तान से अंग्रेज़ों के संबंधों की चर्चा अंतर्निहित उद्देश्यों के संबंध में कीजिये।
• निष्कर्ष दीजिये।
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भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के स्थायित्व के लिये अंग्रेज़ों ने देशी रियासतों के विलय की नीति को अपनाया। सहायक संधि व हड़प नीति के माध्यम से भारत की सीमा के भीतर अंग्रेज़ों ने अपने साम्राज्य को विस्तारित किया। इसी क्रम में भारत में औपनिवेशिक साम्राज्य की सीमाएँ उन देशों को छूने लगीं जो साम्राज्यवादी शक्तियों की क्रीड़ास्थली थे। ऐसे में ब्रिटिश शासकों का उक्त क्षेत्रों में हस्तक्षेप, भारतीय सीमाओं के स्थायित्व के संदर्भ में देखा जाना चाहिये। यद्यपि इसमें साम्राज्य विस्तार की भावना निहित होने के संबंध में भी पूरी तरह से इनकार नहीं किया जा सकता। इसे निम्न घटनाओं के आधार पर मूल्यांकित किया जा सकता है:
- 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से ही तिब्बत में रूसी प्रभाव का निरंतर विस्तार हो रहा था। 1898 ई. में दलाई लामा ने रूस की बौद्ध जनता से धार्मिक कार्यों के लिये अनुदान देने का प्रस्ताव रखा था। भारत की ब्रिटिश सरकार के लिये तिब्बत में रूस का बढ़ता प्रभाव साम्राज्यवादी शक्ति के विस्तार के लिये खतरा था। वहीं, दूसरी तरफ इसी दौर में यूरोप में जर्मनी की बढ़ती शक्ति पर रोक लगाने के लिये अंग्रेज़ाें को रूस के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने की आवश्यकता थी।
- उपर्युक्त विरोधाभाषी परिस्थितियों में ब्रिटिश सरकार ने आंग्ल-तिब्बत युद्ध (1904 ई.) की नींव रखी तथा तिब्बत को विजित करके भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को सुरक्षित किया और लॉर्ड कर्ज़न की दूरदर्शितापूर्ण नीति के कारण तिब्बत में रूसी प्रभाव के विस्तार मार्गों को अवरुद्ध कर दिया गया।
- वहीं, दूसरी तरफ भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमा पर अवस्थित अफगानिस्तान राज्य पर भी रूस का प्रभाव तीव्र गति से बढ़ रहा था। रूस का फारस की सीमा तक पहुँचना ब्रिटिशों के लिये भारत में साम्राज्य के स्थिरीकरण को लेकर खतरा था। रूस द्वारा भारत पर आक्रमण की रणनीति का पूर्वानुमान लगाकर अंग्रेज़ों ने भारत में अपने साम्राज्य की सुरक्षा हेतु दो प्रकार की नीतियाँ बनाईं-
- अग्रगामी विचारधारा की नीति: इसके तहत अंग्रेज़ों ने अफगान राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप किया, फलत: दो आंग्ल-अफगान युद्ध लड़े गए।
- कुशल अक्रियता की नीति: इसके द्वारा अंग्रेज़ों ने अफगानिस्तान में तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए रूस के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना की और यथासंभव अफगानिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की नीति का अनुसरण किया।
स्पष्ट है कि भारत में ब्रिटिशों ने अपने साम्राज्य को स्थायित्व व मज़बूती प्रदान करने के लिये वैदेशिक संबंधों की सुनियोजित व दीर्घकालिक रणनीति बनाई थी जो अपने परिणामों में सफल भी रही।