केंद्र-राज्य विधायी संबंधों में क्षेत्रीय न्यायक्षेत्र के मामले में संसद पर किस प्रकार के प्रतिबंध आरोपित किये गए हैं? साथ ही स्पष्ट करें कि किन असामान्य स्थितियों में राज्य क्षेत्र में संसदीय विधान बनाए जा सकते हैं? (250 शब्द)
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• क्षेत्रीय न्यायक्षेत्र के मामले में संविधान द्वारा आरोपित प्रतिबंध।
• संसद द्वारा राज्य क्षेत्र के लिये कानून बनाने की परिस्थितियाँ।
हल करने का दृष्टिकोण
• संक्षप्ति परिचय दीजिये।
• क्षेत्रीय न्यायक्षेत्र के मामले को लेकर संविधान द्वारा संसद पर आरोपित प्रतिबंधों का उल्लेख कीजिये।
• उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिये जब ससंद को राज्य क्षेत्र के लिये राज्य सूची पर विधान बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
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भारतीय संविधान में संघीय शासन प्रणाली के तहत विधायी, प्रशासनिक एवं वित्तीय शक्तियों का बँटवारा किया गया है। संविधान के भाग-11 में अनुच्छेद 245 से 255 तक केंद्र-राज्य विधायी संबंधों की चर्चा की गई है।
अनुच्छेद 245 संसद को पूरे भारत या भारत के किसी भाग के लिये कानून बनाने की शक्ति देता है, लेकिन क्षेत्रीय न्यायक्षेत्र के मामले में संसद पर कुछ प्रतिबंध भी लगाए गए हैं, अर्थात संसद के कानून निम्नलिखित क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे:
- राष्ट्रपति दिल्ली एवं चंडीगढ़ के अलावा शेष सभी संघ-राज्य क्षेत्रों के संबंध में शांति, प्रगति एवं सुशासन के लिये विनियम बना सकते है। ये विनियम संसद द्वारा पारित कानूनों को निरसित या उनमें संशोधन कर सकते हैं।
- पाँचवीं अनुसूची में उल्लिखित अनुसूचित क्षेत्रों के संदर्भ में राज्यपाल को शांति एवं सुशासन के लिये विनियम बनाने तथा इस क्षेत्र में संसद (विधानमंडल के भी) के कानून लागू न करने की शक्ति प्राप्त है।
- छठीं अनुसूची में शामिल असम के स्वायत्त जिलों के संदर्भ में राज्यपाल को संसद के किसी विधेयक को लागू न करने या कुछ विशिष्ट परिवर्तनों के साथ लागू करने की शक्ति प्राप्त है। राष्ट्रपति को भी इसी तरह की शक्ति मेघालय, त्रिपुरा एवं मिज़ोरम के स्वायत्त ज़िलों के संबंध में प्राप्त है।
यद्यपि सामान्य काल में संसद को संघ सूची एवं समवर्ती सूची के विषयों पर ही कानून बनाने का अधिकार है। लेकिन निम्नलिखित असामान्य परिस्थितियों में संसद को राज्य सूची के विषयों पर विधान बनाने का अधिकार मिल जाता है:
- अनुच्छेद 249क के अनुसार यदि राज्यसभा राष्ट्रीय हित में किसी प्रस्ताव को उपस्थित एवं मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई समर्थन से पारित कर दे। इस स्थिति में संसद को प्रस्ताव में वर्णित राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान संसद को राज्य सूची में शामिल विषयों पर भारत या उसके किसी भाग के लिये विधि बनाने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। ऐसी विधि आपातकाल के समाप्त होने के छह महीने के बाद समाप्त हो जाएगी।
- राज्यों की सहमति या उनके अनुरोध पर अनुच्छेद 252 के अनुसार दो या अधिक राज्यों के विधानमंडल द्वारा प्रस्ताव पारित कर संसद से राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का निवेदन किया जा सकता है। जैसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम (1972), मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम, 1960 आदि।
- भारत सरकार के अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों एवं प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिये संसद राज्य सूची के किसी मामले में अंतर्राष्ट्रीय संधि या समझौते के लिये कानून बना सकती है। उदाहरण के लिये संयुक्त राष्ट्र (सुविधा एवं प्रतिरक्षा) अधिनियम 1947, ट्रिप्स आदि।
- राष्ट्रपति शासन के दौरान संसद को संबंधित राज्य के लिये राज्य सूची पर कानून बनाने का अधिकार मिल जाता है।
- राष्ट्रीय महत्त्व की संस्थाओं के संदर्भ में इससे संबंधित सभी विषयों पर संसदीय विधान बनाने की शक्ति प्राप्त है। धरम दत्त बनाम भारत संघ (2004) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने संसद की इस शक्ति को वैधता प्रदान की।