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प्रश्न :
आदर्श आचार संहिता के उद्देश्य को बताएँ। निर्वाचन आयोग द्वारा आचार संहिता को वैधानिक दर्जा दिये जाने के विरोध का क्या निहितार्थ है? स्पष्ट कीजिये। (250 शब्द)
11 Nov, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• आदर्श आचार संहिता के उद्देश्य एवं इसे वैधानिक दर्जा दिये जाने के पक्ष पर निर्वाचन आयोग की राय की चर्चा करनी है।
हल करने का दृष्टिकोण
• आदर्श आचार संहिता का सामान्य परिचय देते हुए इसके उद्देश्य बताएँ।
• इसे वैधानिक दर्ज़ा दिये जाने के संदर्भ में निर्वाचन आयोग के पक्ष को बताएँ।
• निष्कर्ष दें।
आदर्श आचार संहिता राजनीतिक दलों तथा उम्मीदवारों के लिये आचरण और व्यवहार की मानक है। यह एक दस्तावेज़ है जो राजनीतिक दलों की सहमति से अस्तित्व में आया। आदर्श आचार संहिता भारतीय लोकतंत्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने का एक प्रयास है।
आदर्श आचार संहिता यह सुनिश्चित करता है कि सभी राजनीतिक दलों के लिये बराबरी का समान स्तर उपलब्ध हो, प्रचार अभियान निष्पक्ष और स्वस्थ हो, दलों के बीच झगड़ों और विवादों को टाला जा सके। केंद्र अथवा राज्यों की सत्ताधारी पार्टी को आम चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर अनुचित लाभ लेने से रोकना इसका प्रमुख उद्देश्य है।
कई मोर्चों पर आम चुनाव में आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा देने की बात की जाती है। चुनाव आयोग इस प्रकार के किसी भी कदम का विरोध करता है। चुनाव आयोग का मत है कि मौजूदा व्यवस्था ठीक से काम कर रही है। उसके अनुसार आचार संहिता तुरंत कार्रवाई के समान है। चुनाव आयोग द्वारा किसी राज्य में आम चुनाव सामान्यत: चुनाव कार्यक्रम घोषित करने की तिथि से लगभग 45 दिनों में कराया जाता है। इतने कम समय में आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन संबंधी मामलों को तुरंत कार्रवाई द्वारा निपटाया जाना महत्त्वपूर्ण है। एमसीसी को वैधानिक दर्जा दिये जाने से इसके उल्लंघन का मामला अदालत में जाएगा। न्यायिक प्रक्रिया संबंधी जटिलता के कारण ऐसी शिकायतों पर चुनाव संपन्न होने से पूर्व निर्णय लेना संभव नहीं हो पाएगा। चुनाव आयोग मानता है कि एमसीसी का महत्त्व उल्लंघनकर्त्ता के विरुद्ध चुनाव प्रक्रिया के दौरान सही समय पर कार्रवाई करने के कारण ही है। इसे वैधानिक दर्जा देने से इसका महत्त्व समाप्त हो जाएगा।
चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है। देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व चुनाव आयोग का है, जिसमें आयोग ने निरंतर सफलता प्राप्त की है। इस संदर्भ में सरकार को चुनाव आयोग के पक्ष को गंभीरता से लेना चाहिये और आयोग से व्यापक विचार-विमर्श करके ही कोई निर्णय लेना चाहिये।
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