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मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    हिन्दी निबंध के विकास में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान पर प्रकाश डालिये।

    02 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्य

    उत्तर :

    आचार्य शुक्ल ने हिन्दी निबंध परंपरा को बहुत कम समय में परिपक्वता के उच्च स्तर तक पहुँचा दिया। उनके योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं में व्याख्यायित किया जा सकता है-

    विषयों के स्तर पर उन्होंने मनोविकारपरक तथा काव्यशास्त्रीय क्षेत्रोें को चुना। उनसे पूर्व, इन दोनों ही क्षेत्रों में निबंध लिखे जा रहे थे किंतु दोनों को परिपक्वता आचार्य शुक्ल ने ही दी। उनके मनोविकारपरक निबंधों में मिलने वाली सूक्ष्मता तथा काव्यशास्त्रीय निबंधों में मिलने वाली मौलिकता उन्हें परंपरा में विशिष्ट स्थान दिलाती है।

    निबंध परंपरा में शुक्ल जी ने शैली के स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

    उन्होंने ऐसी भाषा का प्रयोग किया जो उस युग की अमानकता जैसी समस्याओं से बची हुई थी। इस दृष्टि से जिस मानकीकरण हेतु आचार्य द्विवेदी सरस्वती पत्रिका के माध्यम से प्रयास कर रहे थे, वही कार्य उन्होंने निबंधों में किया।

    उन्होंने हिन्दी निबंधों को वैज्ञानिक शैली से जोड़ा। इसके पूर्व के निबंधों में वैज्ञानिक शैली की सभी विशेषताएँ एक साथ नहीं मिलती थीं।

    वस्तुनिष्ठ विश्लेषण की गंभीरता से विचलित हुए बिना उन्होंने वैयक्तिकता, सहृदयता, साहित्यिकता, आत्मनिष्ठता और मनोरंजन जैसे तत्त्वों का पर्याप्त ध्यान रखा जिससे उनके निबंध शुष्कता से बचे रहे।

    उन्होंने भाषा के स्तर पर कसाव का अनूठा प्रतिमान उपस्थित किया। उनकी भाषा इतनी कसी हुई है कि एक भी शब्द अनावश्यक नहीं मिलता। भाषिक मितव्ययता की यह शैली आगे के साहित्य में अत्यंत प्रचलित होती गई।

    उपदेशात्मकता की प्रवृत्ति से बचते हुए हास्य विनोद, उदाहरण आदि की शैली से उन्होंने लोकमंगल के पक्ष को पुष्ट किया और सिद्ध किया कि जटिल-से-जटिल और सैद्धांतिक विषयों में भी लोकमंगल का भाव आरोपित किया जा सकता है।

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