वर्तमान में वायु-प्रदूषण स्वास्थ्य के साथ-साथ आर्थिक समस्या के रूप में भी सामने आया है। इस संदर्भ में जैव-प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों पर चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
प्राकृतिक क्रियाओं (ज्वालामुखी, वनाग्नि, कोहरा, परागकण, उत्कापात आदि) के साथ-साथ आर्थिक विकास की होड़ ने वायु-प्रदूषण के रूप में वायुमंडलीय गैसों में अवांछनीय परिवर्तन को बढ़ावा दिया है जो आज मानव, पशु-पक्षी, वनस्पतियों आदि के स्वास्थ्य के साथ आर्थिक विकास को भी दुष्प्रभावित कर रहा है। ‘एट द क्रॉसरोड रिपोर्ट’ के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण के कारण जीवन-प्रत्याशा 2-6 वर्ष तक कम हो गई है।
संविधान के अनुच्छेद-21 एवं प्राकृतिक कानून के अनुरूप सभी को स्वच्छ एवं स्वस्थ पर्यावरण में ‘जीवन जीने का अधिकार’ है लेकिन ‘विश्व आर्थिक मंच’ के अनुसार, विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 10 भारत में हैं जो इस अधिकार के महत्त्व को धूमिल करता है।
वायु-प्रदूषण ने हृदय, फेफड़ों की बीमारी, मधुमेह और मनोभ्रंश, यकृत की समस्याएँ, मस्तिष्क, पेट के अंगों, प्रजनन क्षमता, मूत्राशय का कैंसर जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं को पैदा किया है, साथ ही यह बच्चों के मानसिक स्तर पर भी नकारात्मक प्रभाव दर्शाता है।
स्वास्थ्य के इन दुष्प्रभावों ने वैश्विक स्तर पर आर्थिक समस्याओं को उभारा है जो कि निम्नलिखित हैं-
- दिसंबर 2018 में वायु प्रदूषण के ‘बहुत खराब’ श्रेणी में प्रवेश करने पर सरकार द्वारा विभिन्न प्रदूषक उत्सर्जक फैक्ट्रियों, प्लान्ट्स और बिल्डिंग निर्माण आदि पर पाबंदी लगा दी थी जिसने आर्थिक विकास क्रियाओं को बाधित कर दिया था।
- दिसंबर 2015 एवं दिसंबर 2016 में बीजिंग में ‘रेड अलर्ट’ और जून 2015 में सेंटियागो में ‘पर्यावरणीय आपातकाल’ की घोषणा ने आर्थिक गतिविधियों पर अकुंश लगा दिया था जिससे विकास की गति पर नकारात्मक प्रभाव सामने आया।
- वायु-प्रदूषण के कारण अनेक बीमारियों के उपचार में स्वास्थ्य खर्च के बढ़ जाने से देश की अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ पड़ता है।
- वायु-प्रदूषण की रोकथाम हेतु सरकार द्वारा किये जाने वाले अतिरिक्त प्रयास जैसे- कृत्रिम बारिश, अनुसंधान एवं मशीनरी का प्रयोग सरकार पर अतिरिक्त वित्तीय दबाव बनाता है।
वायु-प्रदूषण रोकथाम में जैव-प्रौद्योगिकी का उपयोग
- कुछ सूक्ष्मजीव जो प्रदूषकों का प्रयोग कार्बन के स्रोत के रूप में करते हैं, का प्रयोग करना।
- ‘बायोफिल्ट्रेशन’ तकनीक का उपयोग कर प्रदूषकों का जैविक विघटन करना।
- आनुवंशिक अभियांत्रिकी निर्मित सूक्ष्मजीवों (Genetically Engineered Micro-Organisms) का प्रयोग करना जो रासायनिक प्रदूषकों का विघटन कर देते हैं।
- अवायवीय किण्वन (Fermenting Anaerobic), अवायवीय श्वसन (An-aerobically Respiring), अल्पवातरागीय (Microaerophillic) आदि जैव-प्रौद्योगिकी उपचारों का प्रयोग करना।
- जैव-प्रौद्योगिकी का प्रयोग कर प्रदूषकों को उनकी विघटन प्रकृति के अनुरूप वर्गीकृत करना जिससे विघटन/उपचार की उपयुक्त प्रक्रिया का उपयोग किया जा सके।
- White-rot fungi (सफेद-विगलित कवक) का ‘बायो-फिल्टर’ में प्रयोग कर प्रदूषित वायु से हानिकारक रसायनों को समाप्त करना।
- बेसीलस (Bacillus) जेन्थोमोनास, रोडोकोकस, जेन्थोबेक्टर आदि वर्गों के सूक्ष्मजीवों का ‘बायो-रिएक्टर’ में प्रयोग कर दुर्गंध युक्त और अस्थिर कार्बनिक पदार्थों पर नियंत्रण करना।
- कोल्ड-ट्रैपिंग तकनीक का प्रयोग कर कार्बन-मोनोऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर-डाईऑक्साइड को हटाना।
- जैव-प्रौद्योगिकी विकसित सूक्ष्म शैवालों का उपयोग करना जो बड़े पौधों से ज़्यादा वायुमंडलीय कार्बन-डाईऑक्साइड अवशोषित करते है और अवशोषित CO2 की तुलना में अधिक ऑक्सीजन निर्मुक्त करते हैं।
- बायोगैस का उपयोग करना आदि।
अत: स्वस्थ, संतुलित एवं हरित विश्व की संकल्पना को साकार करने में जैव-प्रौद्योगिकी अत्यंत सहायक सिद्ध हो सकती है।