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प्रश्न :
सूफी विचारधारा ने भक्ति आंदोलन को किस सीमा तक प्रभावित किया था? विश्लेषण करें।
01 Nov, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स इतिहासउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• कथन सूफी विचारधारा द्वारा भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने की सीमा से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
• सूफी विचारधारा एवं भक्ति आंदोलन के विषय में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
• सूफी विचारधारा द्वारा भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने की सीमा का उल्लेख कीजिये।
• उचित निष्कर्ष लिखिये।
सूफीवाद इस्लाम के भीतर एक उदारवादी सुधार आंदोलन था, जिसकी उत्पत्ति फारस में हुई थी जो ग्यारहवीं सदी में भारत में फैल गया। भक्ति पंथ का उदय तमिलनाडु में सातवीं और आठवीं सदी के दौरान ही हो चुका था जिसे मध्यकाल में विशाल लोकप्रियता प्राप्त हुई।
सूफी विचारधारा द्वारा भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने की सीमा का उल्लेख निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-
- ताराचंद, यूसुफ हुसैन एवं प्रो. अजीज अहमद जैसे इतिहासकारों ने भक्ति भावना पर इस्लाम या सूफी विचारधारा के गहरे प्रभाव की पुष्टि की है। इन्होंने शंकराचार्य के अद्वैतवाद एवं रामानंद की भक्ति-भावना पर इसके प्रभाव का उल्लेख किया है।
- सूफी शिक्षकों के उपदेशों ने रामानंद, कबीर और नानक जैसे भक्ति पंथ के सुधारकों की सोच को आकार दिया। सूफीवाद की उदार एवं गैर-रूढ़िवादी विशेषताएँ मध्यकालीन भक्ति पंथ के संतों पर गहरा प्रभाव रखती थीं।
- संतों का मन निर्मल होता है और जो सिद्धांत उन्हें अपने लक्ष्य की तरफ ले जाने में उचित प्रतीत होते हैं उन्हें वे निस्संकोच भाव से अपना लेते हैं। अत: कबीर एवं नानक जैसे महान संतों के विचारों में हमें सूफी विचारधारा का मिश्रण दिखलाई पड़ता है।
- गुरु का महत्त्व, नाम स्मरण, प्रार्थना, ईश्वर के प्रति प्रेम, व्याकुलता एवं विरह की स्थिति, संसार की क्षणभंगुरता, जीवन की सरलता, सच्ची साधना, मानवता से प्रेम, ईश्वर की एकता एवं व्यापकता जैसी समानताओं के चलते इस्लाम के भक्ति भावना पर अत्यधिक प्रभाव की संज्ञा देना अनुचित है।
- 12वीं सदी से पहले दोनों संस्कृतियों का संपर्क इतना निकटतम नहीं था कि आध्यात्मिक तौर पर वे एक-दूसरे को पूर्ण रूप से प्रभावित कर सकें और 13वीं सदी के बाद यह निर्धारित कर पाना कठिन है कि भक्ति आंदोलन पर इसका कितना प्रभाव पड़ा।
- भक्ति आंदोलन को मध्यकाल में भले ही व्यापक लोकप्रियता प्राप्त हुई हो लेकिन इसके बुनियादी विचार भारतीय परंपरा में ही मौजूद रहे हैं।
- भारत का संपूर्ण उपनिषद साहित्य रहस्यवाद से परिपूर्ण है और भगवद्गीता में भक्ति भावना का सुंदर वर्णन है, ऐसे में रहस्यवाद एवं भक्ति भावना का विकास सूफीवाद द्वारा मानना उचित प्रतीत नहीं होता है।
- संतों द्वारा जाति प्रथा एवं ब्राह्मणों के आडम्बरों की कटु आलोचना प्राचीन भारत में बौद्ध धर्म का महत्त्वपूर्ण भाग था जिसे आगे चलकर नाथपंथी योगियों ने भी अपनाया।
भक्ति एवं सूफी आंदोलनों ने ईश्वरीय प्रेम द्वारा मानवता का मार्ग प्रशस्त किया। दोनों में ही बहुत सारी समानताएँ हैं लेकिन भक्ति आंदोलन के मुख्य विचारों पर प्रभाव की सीमा के विषय में निश्चित रूप से कुछ कहना कठिन है।
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