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प्रश्न :
सुस्पष्ट कीजिये कि हाल के वर्षों में संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में किस प्रकार का क्षरण दृष्टिगत हो रहा है एवं इसके उपचार हेतु आप किस प्रकार के सुधारों की अनुशंसा करेंगे? (250 शब्द)
01 Nov, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्थाउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में क्षरण को बताना है।
• इसमें सुधार के लिये उपाय बताने हैं।
हल करने का दृष्टिकोण
• संसद के महत्त्व को बताते हुए उत्तर की शुरुआत करें।
• संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में क्षरण को तथ्यों एवं उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट करें।
• इसमें सुधार के लिये अपने सुझाव दें।
• अंत में निष्कर्ष लिखें।
संसद को लोकतंत्र का मंदिर माना जाता है। यह जनप्रतिनिधि मंच का शीर्ष निकाय होता है। इसका मुख्य कार्य कानून बनाना, सरकार की जवाबदेही तय करना तथा आवश्यक मुद्दों पर चर्चा एवं बहस करना है।
हाल के वर्षों में संसदीय कार्यवाही में गतिरोध, व्यक्तिगत एवं संकीर्ण मुद्दों को लेकर होने वाला शोर-शराबा, ससंद सदस्यों की उपस्थिति को लेकर उदासीनता तथा विभिन्न विधेयकों को जल्दबाजी में पारित करने की प्रवृत्ति आदि कारणों से संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता एवं गुणवत्ता का क्षरण हो रहा है। इससे संसद की छवि भी धूमिल हुई है।
1950 एवं 60 के दशक में जहाँ संसदीय कार्यवाही प्रतिवर्ष औसतन एक वर्ष में 140 दिन चलती थी तथा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर चर्चा व बहस संसद की मुख्य विशेषता थी। वहीं पिछले एक दशक में प्रतिवर्ष औसतन 70 दिन ही संसद की कार्यवाही चलती है। इसी तरह अब स्थानीय एवं संकीर्ण मुद्दों पर सदन की कार्यवाही में बाधा डालने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिये हाल के शीतकालीन सत्र में प्रधानमंत्री से माफी मांगने के सवाल पर कई दिन संसद को स्थगित करना पड़ा।
संसद द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भी विसंगतियाँ दृष्टिगत हुई हैं। कुछ विधेयक जहाँ कई साल से अटके पड़े हैं, जैसे-महिला आरक्षण विधेयक। वहीं कुछ विधेयक बिना पर्याप्त एवं सार्थक बहस के जल्दबाज़ी में पारित कर दिये जाते हैं। उदाहरण के लिये 2008 में 16 विधेयकों को 20 मिनट में पारित कर दिया गया था।
यद्यपि संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता में हाल के वर्षों में सुधार हुआ है। जहाँ 2016 के शीतकालीन सत्र में लोकसभा एवं राज्यसभा की उत्पादकता क्रमश: लगभग 17 प्रतिशत तथा 20 प्रतिशत रही, वहीं 2017 के बजट सत्र में क्रमश: 113.27 प्रतिशत तथा 92.43% प्रतिशत रही है।
फिर भी समग्रता में संसदीय कार्यप्रणाली की उत्पादकता एवं गुणवत्ता में सुधार के लिये निम्न उपायों को अपनाया जा सकता है-
- संसदीय अनुशासन को संसद सदस्य बनने की योग्यता एवं संसदीय अनुशासनहीनता को निर्योग्यता से जोड़ा जाए ताकि अनुशासन एवं शिष्टाचार को बढ़ाया जा सके।
- संसद की कार्यवाही के लिये न्यूनतम कार्यदिवस निश्चित किये जाएँ ताकि इसकी उत्पादकता को सुनिश्चित किया जा सके। संविधान समीक्षा आयोग ने भी इसकी सिफारिश की थी।
- संसदीय समितियों के महत्त्व को स्थापित करना चाहिये। इससे विधेयक के पारित होने से पूर्व उस पर व्यापक विचार-विमर्श को बढ़ावा मिलेगा तथा बैकबेंचर सांसदों को भी अपना दृष्टिकोण रखने का मौका मिलेगा।
- सांसदों के पास रिसर्च स्टॉफ की उपलब्धता बढ़ानी चाहिये। जिससे वे व्यक्तिगत स्तर पर विशेषज्ञ सलाह प्राप्त कर सकें। इससे उनके सुझाव एवं दृष्टिकोण का अधिक व्यापकता से प्रसार होगा।
- सत्ता पक्ष के साथ-साथ विपक्ष को जवाबदेह बनाने के लिये एक आचरण संहिता बनाई जानी चाहिये।
- दल-बदल कानून में आवश्यक संशोधन किया जाना चाहिये, जिससे सांसदों को पार्टी-लाइन से इतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिले।
निष्कर्षत: कह सकते हैं कि संसद जनभावनाओं की अभिव्यक्ति का सर्वोच्च मंच है। अत: इसकी कार्यप्रणाली की गुणवत्ता एवं उत्पादकता में वृद्धि के लिये आवश्यक सुधारों के माध्यम से विसंगतियों को दूर किया जाना चाहिये। ताकि यह आदर्श रूप में अपने महत्त्व को चरितार्थ कर सके।
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