विश्व के अनेक देशों का अनुभव रहा है कि ग्रामीण एवं राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं को चुनावों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है। इस प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के बेहतर अवसर स्थानीय स्वशासन में या विकेंद्रीकरण के संस्थानों में मिल सकते हैं और भारत इस कड़ी में एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण साबित हो रहा है। सिद्ध कीजिये।
13 Aug, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 2 राजव्यवस्था
उत्तर की रूपरेखा
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पंचायती राज के माध्यम से लाखों स्त्रियों का जो लोकतांत्रिक प्रशिक्षण हो रहा है उससे पंचायती राज में महिलाओं का दबदबा बढ़ता ही जा रहा है जो अंततः हमारी समग्र राजनीति के चरित्र को प्रभावित कर रहा है। आज देश की 2.5 लाख पंचायतों में लगभग 32 लाख प्रतिनिधि चुनकर आ रहे हैं जिनमें से 14 लाख से भी अधिक महिला प्रतिनिधि शामिल हैं। यह आँकड़ा बताता है कि महिलाएँ किस तरह से देश में राजनीतिक कार्यों में सहभागिता कर रहीं हैं। पंचायत के कामों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी न केवल महिलाओं के खुद के स्वाभिमान के लिये सकारात्मक संकेत है बल्कि इससे भारत के गाँवों में फैली सामजिक असमानता भी दूर होगी।
विश्व के अनेक देशों में जहाँ आज भी महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी शून्य है वहीं, भारत में पंचायती राज में महिलाओं के लिये 33 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था के चलते महिलाएँ राजनैतिक रूप से भी सशक्त हुई हैं और उनकी निर्णय लेने की क्षमता का भी विकास हुआ है। स्थानीय निकायों में महिलाओं की राजनैतिक भागीदारी का यह आँकड़ा अब 42 प्रतिशत से भी अधिक हो गया है। देश में महिलाओं को पंचायतों में 50 प्रतिशत आरक्षण देने वाला बिहार अग्रणी राज्य है। कैबिनेट ने भी 110वें संविधान संशोधन को मंज़ूरी दे दी है जिसके तहत महिलाओं के लिये पंचायती राज संस्थाओं में आरक्षण 50% कर दिये जाने का प्रावधान है, जबकि 15 प्रमुख और बड़े राज्यों में इस संबंध में विधेयक पास कर दिये गए हैं।
निष्कर्ष के रूप में भारत में 73वें और 74वें संविधान संशोधन के द्वारा सदस्यों और अध्यक्षों के एक-तिहाई पद महिलाओं के लिये आरक्षित करके उनकी स्थानीय शासन में भागीदारी सुनिश्चित की गई है। इस प्रावधान के कारण महिलाओं की क्षमता उजागर हुई है, जो भविष्य में भारत की राजनीति को एक नया मोड़ दे सकती है।