यद्यपि अतीत में भारत और आसियान निश्चित रूप से एक-दूसरे से लाभान्वित हुए हैं, लेकिन भविष्य को संवारने की दृष्टि से वे अभी एक-दूसरे के लिये उतने महत्त्वपूर्ण नहीं बन पाए हैं। आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये।
30 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंध
प्रश्न विच्छेद • भारत-आसियान संबंधों के अतीत एवं वर्तमान की समीक्षा करनी है। हल करने का दृष्टिकोण • भारत-आसियान की पृष्ठभूमि का उल्लेख करें। • भारत-आसियान के अब तक के संबंधों का विश्लेषण करें। • बताएँ कि आसियान देश भारत के लिये किस प्रकार महत्त्वपूर्ण हैं। • समस्याएँ एवं चुनौतियों का संक्षेप में उल्लेख करें। • सुझाव के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत करें। |
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने दक्षिण-पूर्वी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाए लेकिन 1970 के दशक में भारत का झुकाव सोवियत संघ की तरफ अधिक हो गया। 1990 के दशक में भारत ने इन देशों के साथ संबंध प्रगाढ़ करने के लिये लुक ईस्ट नीति अपनाई। वर्ष 2014 में बीजेपी सरकार ने आसियान देशों के साथ आर्थिक, सामरिक, भू-राजनीतिक एवं ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से संबंध को और मज़बूत करने के लिये ‘लुक ईस्ट’ नीति को ‘लुक एक्ट’ नीति में बदल दिया।
भारत-आसियान एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है। जहाँ आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है वहीं, आसियान के लिये भारत सांतवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत ने आसियान में अरबों डॉलर का निवेश किया है। वर्तमान में आसियान के साथ भारत का व्यापार 70 अरब डॉलर का है। भारत के निवल व्यापार का लगभग 10 प्रतिशत आसियान के साथ है। आसियान के महत्त्वपूर्ण सदस्य सिंगापुर द्वारा असम में कई कौशल विकास केंद्र खोले गए हैं। यद्यपि भारत-आसियान संबंध से दोनों लाभान्वित हुए हैं किंतु चीन-आसियान संबंध की तुलना में यह लाभ अत्यन्त कम है। वर्तमान में चीन-आसियान व्यापार 500 अरब डॉलर को पार कर चुका है। लगभग सभी आसियान देश चीन के बढ़ते सैन्य कौशल से आशंकित होने के बावजूद चीन पर आर्थिक निर्भरता और ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना के संभावित लाभों की वज़ह से चीन के करीब हो रहे हैं।
आसियान देश भारत के लिये न केवल आर्थिक बल्कि सामरिक, भू-राजनीतिक एवं ऊर्जा सुरक्षा की दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। इसे निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा समझा जा सकता है:-
वास्तव में भारत आसियान देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने में असफल रहा है। आसियान देशों के साथ 2020 तक 200 अरब डॉलर तक व्यापार बढ़ाने के लक्ष्य से अभी हम कोसों दूर हैं। भारत, म्याँमार और थाईलैंड की त्रिपक्षीय हाईवे निर्माण की परियोजना भी अपनी समय-सारणी से काफी पीछे चल रही है। आसियान देशों द्वारा सामुद्रिक सुरक्षा के लिये साझेदारी की मांग भी भारत पूरी नहीं कर पा रहा है।
भारत को आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते का इष्टतम उपयोग करना होगा। कनेक्टिविटी कॉरिडोर को ट्रेड कॉरिडोर में विकसित करना होगा। साथ ही, इन देशों के साथ सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को भी सुदृढ़ करना होगा। वास्तव में भारत-आसियान संबंध अभी शैशवावस्था में है। भारत को दक्षिण-पूर्व एशिया में अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिये ‘एक्ट ईस्ट’ पॉलिसी पर पूर्ण समर्पण से कार्य करना होगा।