छायावादी कविता के बिंब-सौंदर्य पर प्रकाश डालिये।
29 Oct, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यआचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कविता में बिंब के महत्व को रेखांकित करते हुए लिखा था कि ‘कविता में अर्थग्रहण नहीं, बिंब ग्रहण होता है। इस कसौटी पर खरे उतरनेवाले काव्यान्दोलनों में छायावाद सर्वोपरि है। जीवन के विविध क्षेत्रों और उसमें भी प्रकृति के अप्रतिम बिंबों की सर्जना करने में छायावादी कविता अद्वितीय है।
छायावादी कविता में प्रकृति के विराट बिंबों से लेकर सूक्ष्म बिंबों तक का तथा एकल बिंबों से लेकर संश्लिष्ट बिंबों तक का निर्माण कवियों ने जिस कुशलता के साथ किया है वह छायावादी कविता को शिल्पगत उत्कर्ष प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
निराला की कविता ‘राम की शक्ति-पूजा’ का निम्नांकित संश्लिष्ट एवं विराट प्रकृति-बिंब अपनी भव्यता के कारण कालजयी ही हो गया है-
है अमानिशा, उगलता गगन धन अंधकार खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन चार
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल भूघर ज्यों ध्यान-मग्न, केवल जलती मशाल,
इसी प्रकार प्रसाद की कामायनी का आरंभ ही ऐसे ही बिम्ब-चित्रण से हुआ है-
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष भींगे नयनों से देख रहा था प्रलय-प्रवाह
‘कामायनी’ में एकल ही नहीं, संश्लिष्ट बिंब भी पर्याप्त मात्रा में प्रयुक्त हुए हैं। उदाहरण के लिए-
दिग्दाहों से घूम उठे, या जलघर उठे क्षितिज-तट के,
सघन गगन में भीम प्रकंपन, झंझा के चलते झटके