‘‘बुद्धिमता और चरित्र-निर्माण’’, क्या वर्तमान भारतीय शिक्षा-प्रणाली में इस संयोजन की प्राप्ति संभव है? चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
‘बिना चरित्र के ज्ञान’ गांधी द्वारा बताए गए सात सामाजिक दोषों में एक है। वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली ज्ञान आधारित है जिसमें चारित्रिक विशेषता, व्यक्ति विशिष्ट कौशल, व्यावहारिक ज्ञान की अपेक्षा अधिक अंकों की प्राप्ति और सैद्धांतिक ज्ञान को उच्च दर्जा दिया जाता है।
परिवार से लेकर स्कूलों-कॉलेजों में प्राप्त होने वाली शिक्षा दिनोंदिन चरित्र निर्माण से दूर होती जा रही है। इसकी प्राप्ति में कई बाधाएँ उपस्थित हैं किंतु यह अप्राप्य नहीं है। इसकी प्राप्ति हेतु निम्न विकल्पों का चयन बेहतर सिद्ध हो सकता है-
- नई शिक्षा नीति का निर्माण जो बुद्धिमता के साथ ही चरित्र-निर्माण पर भी केंद्रित हो।
- एकल की बजाय सांगठनिक शिक्षा पर ज़ोर देने की आवश्यकता है जिससे बच्चों में टीमवर्क की भावना का विकास हो।
- अधिक अंकों की प्राप्ति की बजाय व्यक्तित्व विकास पर अधिक बल दिया जाना चाहिये।
- स्कूली पाठ्यक्रम में ‘नैतिकता’ को शामिल किया जाए जिसे व्यवहार में लाना अधिक सुलभ हो सके।
- स्कूलों के स्तर के साथ-साथ पारिवारिक शिक्षा की भी अहम भूमिका होती है, इसलिये परिवार के सदस्यों द्वारा इस मूल्य की अभिव्यक्ति व्यावहारिक रूप में की जानी चाहिये।
- अंत:गतिविधियों के साथ-साथ बाह्य गतिविधियों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाए जिससे नैतिकता या चरित्र के विभिन्न पहलुओं का स्वत: विकास संभव हो सके, जैसे- सामाजिक संवेदनशीलता, नैतिक मुद्दों के प्रति जागरूकता आदि।
- इन सभी विशेषताओं को व्यवहार्य बनाने के समक्ष विभिन्न चुनौतियाँ मौजूद हैं, जो निम्न हैं-
- सर्वप्रथम वर्तमान शिक्षा प्रणाली के प्रभावों के प्रति अभिवभावकों की अनभिज्ञता जिससे व्यक्तित्व विकास एवं मानसिक मज़बूती का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा हैं।
- चरित्र विकास की सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक क्षेत्र में महत्ता के प्रति जागरूकता का अभाव।
- इस दिशा में बनाई गई नीतियों को धरातलीय स्तर पर लागू करने के प्रति निराशाजनक व्यवहार।
- शिक्षा के संबंध में नवाचारों की कम महत्ता और इस संदर्भ में वित्त की कमी।
इन सब बाधाओं के बावजूद सरकार द्वारा इस दिशा में विभिन्न पहलों या नीतियों का निर्माण किया गया है जो इस लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक सिद्ध हो सकती हैं-
- नई शिक्षा नीति, 2019
- दिल्ली सरकार की ‘प्रसन्नता, स्वच्छता नीति’
- आई.ओ.ई (IoE) टैग की प्राप्ति का लक्ष्य जिससे भारतीय शिक्षा को वैश्विक शिक्षा नीति के समतुल्य बनाया जा सके।
- पीएम अनुसंधान पैलोशिप की शुरुआत जिससे नवाचाराें को बढ़ावा मिल सके।
उपरोक्त पहलाें को धरातलीय स्तर पर जीवंत बनाने और बुद्धिमता के साथ-साथ चारित्रिक विलक्षणताओं के पर्याप्त विकास के लिये पारिवारिक स्तर व स्कूली शिक्षा के स्तर पर बदलाव की आवश्यकता है, जो समाज, देश, विश्व स्तर पर सभ्यता के विकास को परिपूर्णता प्रदान करेगा।