भीष्म साहनी के उपन्यासों में निहित सामाजिक चेतना पर प्रकाश डालिये।
23 Oct, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यहिन्दी उपन्यासकारों में प्रेमचंद के बाद गहरी सामाजिक चेतना से युक्त उपन्यासकारों में भीष्म साहनी का नाम अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। उनके उपन्यासों में निहित सामाजिकता का सबसे महत्त्वपूर्ण पक्ष एक गैर-सांप्रदायिक सामाजिक दृष्टिकोण की खोज है। अपने उपन्यास ‘झरोखे’, ‘तमस’ और ‘नीलू नीलिमा नीलोफर’ में वे एक गंभीर रचनात्मक विमर्श के साथ ऐसा करते दिखाई देते हैं। ‘तमस’ में भारतीय परिप्रेक्ष्य में सांप्रदायिकता से जुड़े विभिन्न पहलुओं; सत्ता एवं राजनीति द्वारा धर्म का अपने स्वार्थ के लिये इस्तेमाल, सभी धर्मों में निहित सांप्रदायिक मानसिकता का समान चरित्र, धर्मांधता और कट्टरता का पीढ़ी-दर-पीढ़ी संक्रमण, सांप्रदायिकता का सर्वाधिक शिकार निम्न वर्ग के लोगों का होना आदि, का उद्घाटन हुआ है।
भीष्म साहनी ने अपने उपन्यासों में भारतीय समाज में स्त्री की पराधीनता जैसी समस्या को भी चित्रित किया है। ‘कड़ियाँ’ उपन्यास में प्रमिला के माध्यम से उन्होंने नारी की विडंबनापूर्ण स्थिति के साथ उसके भीतर से प्रकट होती एक संघर्षशील नई नारी की भी पहचान की है। भीष्म साहनी के उपन्यासों में निम्न मध्यवर्गीय जीवन के संघर्षों एवं त्रासदियों का भी चित्रण हुआ है।
कुल मिलाकर भीष्म साहनी अपने उपन्यासों में यह लक्ष्य लेकर चले हैं कि इतिहास, संस्कृति एवं मूल्यों के यथास्थितिवादी भ्रमों से मुक्त तभी हुआ जा सकता है जब मुनष्य को सामाजिक विकास के यथार्थवादी दृष्टिकोण से परिचित कराए जाए।