उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• कथन अकबर एवं औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियों की तुलना से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
• अकबर और औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियों के संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
• अकबर एवं औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियों के उल्लेख के आधार पर तुलना प्रस्तुत कीजिये।
• उचित निष्कर्ष लिखिये।
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धर्म की विशेषता एवं महत्त्व को समझते हुए मध्यकालीन भारत में न केवल अकबर एवं औरंगज़ेब बल्कि अन्य शासकों ने भी धर्म का प्रयोग अपने निजी एवं राजनीतिक लाभों के लिये खुलकर किया। इतिहास से यह सिद्ध होता है कि इनमें से किसी ने कभी धर्म के लिये युद्ध नहीं किया बल्कि समय-दर-समय उसमें आवश्यकतानुरूप परिवर्तन किये।
अकबर की धार्मिक नीतियों का विवरण निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-
- अकबर की धार्मिक नीति सूफी संतों के साथ उसके शुरुआती संपर्क, उसके शिक्षक अब्दुल लतीफ द्वारा दी गई शिक्षा, राजपूत महिलाओं के साथ उसकी शादी, शेख मुबारक जैसे बौद्धिक दिग्गजों के साथ उसका जुड़ाव, उसके बेटे अबुल फैजी एवं अबुल फजल और साथ ही उसकी हिंदुस्तान में एक शानदार साम्राज्य स्थापित करने की महत्त्वाकांक्षा जैसे कारकों से प्रभावित थी।
- अकबर पहले स्वयं के धर्म को न मानने वालों का धार्मिक उत्पीड़न करता था और इसे ही इस्लाम समझता था। लेकिन जैसे-जैसे उसका ज्ञान बढ़ा, वह इस बात पर शर्मिंदा भी हुआ।
- अकबर ने अपने साम्राज्य के विभिन्न स्थानों से तीर्थयात्रियों से लिये जाने वाले करों की वसूली बंद करवा दी और मुस्लिम राज्य में रहने वाली गैर-मुस्लिम प्रजा से लिये जाने वाले कर ‘जजिया’ को भी बंद करवा दिया था।
- अकबर ने इबादतखाने की स्थापना धार्मिक विषयों पर वाद-विवाद के उद्देश्य से करवाई थी। इसमें हिंदू, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े विद्वान भी आमंत्रित किये जाते थे।
- महजर ने यह अधिकार दिया कि उलमा से मतभेद की स्थिति में कुरान के कानूनों के दायरे में साम्राज्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखते हुए अकबर सर्वोत्तम विचार को लागू कर सके। इसने धार्मिक एवं भौतिक सत्ता को विधिवत रूप से अकबर के हाथों में केंद्रित करने का कार्य किया।
- विभिन्न धर्मों के बीच मतभेद की खाई को भरने के लिये अकबर ने 1582 में नया धर्म दीन-ए-इलाही चलाया। यह एक ईश्वर में विश्वास करता था। इसमें सभी धर्मों के अच्छे तत्त्व समाहित थे। इसका आधार तर्कसंगत था।
औरंगज़ेब की धार्मिक नीतियों का विवरण निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-
- 1559 ई. में औरंगज़ेब ने बनारस के पुजारियों को एक चार्टर दिया था जिसमें पुराने मंदिरों को न गिराने, ब्राह्मणों एवं दूसरे हिन्दुओं को परेशान न करने का उल्लेख था।
- 1666 ई. के पश्चात् ‘जजिया’ पुन: लगाया गया, गैर मुस्लिमों पर तीर्थयात्रा कर भी आरोपित किया गया एवं उन पर आयात कर बढ़ाया गया।
- अंधविश्वास एवं इस्लाम के विरुद्ध होने के आधार पर झरोखा दर्शन एवं सिर्फ अल्लाह के सामने किये जाने के आधार पर बादशाह के सामने सिजदा किये जाने पर रोक और होली व मुहर्रम को सार्वजनिक रूप से मनाने पर रोक लगा दी गई।
- आयात कर को लागू करने के पीछे बहुत सख्ती नहीं दिखाई गई और तीर्थयात्रा कर के पीछे धार्मिक कट्टरता से ज़्यादा आर्थिक लक्ष्य नज़र आता है।
- मंदिरों को गिराने का आदेश सभी मंदिरों की बजाय कुछ खास मंदिरों के लिये ही था और ज़्यादातर आदेश कागज़ पर ही रहे तथा जजिया के पीछे धार्मिक कट्टरता के अतिरिक्त आर्थिक कारण भी मौजूद था।
- औरंगज़ेब के काल में हिंदू मनसबदारों की संख्या में तीव्र वृद्धि, जिसमें पूर्व की तुलना में हिंदू उमरा की संख्या का 31.6% होना, हिन्दुओं के प्रति स्पष्ट नीति का परिचायक है।
- राजपूतों के प्रति नीति को 1665 ई. में सामान्यतौर पर शाही खानदान को मिलने वाले दक्षिण के सूबे का भार जयसिंह को सौंपे जाने के आधार पर समझा जा सकता है।
औरंगज़ेब ने भी नीति में परिवर्तन से पूर्व पूर्वजों जैसा ही बर्ताव किया, इसका मतलब यह नहीं कि वह अकबर जैसा था। औरंगज़ेब के विपरीत अकबर ने रूढ़िवादी उलमा वर्ग पर उचित नियंत्रण कायम करने में बेहतर सफलता हासिल की थी। अकबर के विपरीत उपर्युक्त कार्रवाइयों से औरंगज़ेब के संकीर्ण एवं सीमित दृष्टिकोण का ही पता चलता है। औरंगज़ेब कई मायनों में अकबर जैसे शासकों के विपरीत इतिहास से सबक लेने में असफल एवं अदूरदर्शी साबित हुआ। इस्लाम के साथ हमदर्दी का कारण भले ही औरंगज़ेब की धार्मिक कट्टरता की बजाय राजनीतिक आवश्यकता का भाग हो लेकिन इसे उचित नहीं ठहराया जा सकता।