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प्रश्न :
भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने में आपातकाल का दौर एक मील का पत्थर सिद्ध हुआ। आकलन कीजिये। (250 शब्द)
17 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
आपातकाल ने भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था को किस प्रकार पुनर्जीवित किया, बताएँ?
हल करने का दृष्टिकोण
आपातकाल से पूर्व की स्थिति को संक्षेप में बताते हुए उत्तर प्रारंभ करें।
आपातकाल के दौरान विद्यमान स्थिति को संक्षेप में बताएँ।
इसने किस प्रकार लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने में भूमिका निभाई, बताएँ?
निष्कर्ष लिखें।भारत में सबसे बड़े राजनीतिक संकट के तौर पर 1975 के आपातकाल को भारतीय राजनीति के इतिहास में काला अध्याय के रूप में जाना जाता है। वस्तुत: 1973 की शुरुआत से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था में गिरावट आने लगी थी। समाज मेें असमानता में वृद्धि हो रही थी तथा जनता की आकांक्षाएँ पूरी नहीं हो पा रही थीं। आर्थिक स्थिति में स्पष्ट गिरावट दर्ज हो रही थी। बेरोज़गारी का स्तर, महँगाई, खाद्य संकट बढ़ता ही जा रहा था, ऐसी परिस्थिति में जनता तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के शासन से असंतुष्ट होने लगी। परिणामस्वरूप हड़तालें, जुलूस इत्यादि में बढ़ोतरी होने लगी, जिससे कानून व व्यवस्था चरमराने लगी। किसी मज़बूत नेतृत्त्व के अभाव में राजनीतिक व्यवस्था कमज़ोर होने लगी। अत: इस परिस्थिति में 1975 में आपातकाल की घोषणा कर दी गई।
इस दौरान संसद को अप्रभावी बना दिया गया न्यायपालिका पर भी अंकुश लगा दिया गया और कई राजनीतिक नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हालाँकि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार द्वारा अपने इस निर्णय के औचित्य को सिद्ध करने के लिये इसे जनतांत्रिक प्रक्रिया को बेहतर करने हेतु लिया फैसला बताया गया। बावज़ूद इसके आपातकाल का निर्णय गलत था।
परंतु यदि इसके सकारात्मक पहलुओं पर गौर करें तो कुछ बुद्धिजीवियों को छोड़कर अधिकांश जनता की इस निर्णय में सहमति थी। इस दौरान सार्वजनिक व्यवस्था और अनुशासन को फिर से कायम कर लिया गया तथा लगातार हड़तालों, धरना-प्रदर्शनों पर अंकुश लगा दिया गया। सामान्य जीवन को पूरी तरह से व्यवस्थित कर दिया गया, सरकारी कर्मचारी समय से दफ्तर आने लगे, तस्करी, कालाबाज़ारी, जमाखोरी इत्यादि पर अंकुश लगा दिया गया और कई जनकल्याणकारी कार्यक्रम आरंभ किये गए जिसमें सभी वर्गों के उत्थान को प्रश्रय दिया गया। लेकिन यह व्यवस्था ज्यादा दिन तक नहीं रह पाई, जनता का आपातकाल से मोहभंग होने लगा तथा वह अब इसे निरंकुशतंत्र स्थापित करने के रूप में देखने लगी। इस संदर्भ में कुछ आलोचकों द्वारा यहाँ तक कहा गया कि भारत से लोकतंत्र अब समाप्त होने के कगार पर है।
लेकिन 1977 में आपातकाल को वापस लेना व चुनाव कराने की घोषणा, आशा की किरण के रूप में प्रतीत होने लगी। इसके उपरांत हुए चुनाव आज़ादी के बाद के भारतीय इतिहास के निर्णायक चुनाव के रूप में रहा। जनता द्वारा चुनावी प्रक्रिया में बढ़-चढ़कर भाग लिया गया। इन चुनावों ने दिखा दिया कि भारतीय जनता में लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति कितना लगाव छुपा हुआ है जो भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के प्रभाव और स्वतंत्र चुनावों के साथ-साथ जनवादी क्रियाकलापों में भाग लेने के अनुभव का स्पष्ट परिणाम था।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि आपातकालीन शासन व्यवस्था का स्वरूप जैसा भी रहा हो परंतु इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसके बाद हुए चुनाव में भारी संख्या में जनमानस का शामिल होना और विपक्ष की विजय भारतीय लोकतंत्र की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में है, जिसने वास्तव में लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुनर्जीवित करने में सहयोग दिया।
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