उत्तर :
प्रश्न विच्छेद • कथन कला के क्षेत्र में पल्लवों की उपलब्धियों के मूल्यांकन से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण • पल्लव राजवंश के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये। • कला के क्षेत्र में पल्लवों की उपलब्धियों का मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिये। • उचित निष्कर्ष लिखिये।
|
पल्लवों ने प्रारंभिक पल्लव शासकों (250 ई.) से लेकर नौवीं शताब्दी के अपने पतन के अंतिम समय तक शासन किया। पल्लवों ने वास्तुकला के साथ-साथ संगीत, नृत्य एवं चित्रकला के क्षेत्र में भी प्रगति की, इस प्रकार पल्लव वास्तुकला का इतिहास में काफी महत्त्व है।
कला के क्षेत्र में पल्लवों की उपलब्धियों का मूल्यांकन निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-
- पल्लव कलाकारों ने धीरे-धीरे वास्तुकला को काष्ठकला एवं कंदराकला के प्रभाव से मुक्त करना प्रारंभ किया। पल्लवों ने चट्टान मेें मंदिरों की खुदाई कर कला की शुरुआत की। प्रमुख पल्लव नरेशों के नाम पर वास्तुकला की चार शैलियाँ-महेन्द्रवर्मन, मामल्ल, राजसिंह एवं नन्दिवर्मन हैं। महेन्द्रवर्मन ने चट्टानों को काटकर बनाए जाने वाले मंदिरों की शुरुआत की।
- वास्तव में मंदिर स्थापत्य की द्रविण शैली की शुरुआत पल्लव शासन के साथ ही हुई। यह गुफा मंदिरों से शुरू होकर अखंड रथ के रूप में क्रमिक विकास था जिसकी परिणति संरचनात्मक मंदिरों के रूप में हुई।
- पल्लव शासक नरसिंहवर्मन द्वारा महाबलिपुरम या मामल्लपुम बनवाया गया, इस प्रकार रथ के रूप में सात मंदिर प्रसिद्ध हैं। ये पल्लव शासकों द्वारा आराध्य देवताओं की प्रतिमाएँ स्थापित करने के लिये बनवाए गए प्रस्तर मंदिरों में सबसे प्रसिद्ध हैं।
- मामल्लपुम अपने तट मंदिर के लिये प्रसिद्ध है जो किसी चट्टान को काटकर नहीं बल्कि स्वतंत्र संरचना के रूप में खड़ा किया गया है। कांची का कैलाशनाथ मंदिर पल्लव राजवंश के महानतम स्थापत्य की उत्कृष्ट कृति है एवं इसका अच्छा उदहारण है। यह विश्व में प्रस्तर कला की महान एवं अद्वितीय कृति है।
- पल्लवों ने मूर्तियों के विकास में भी योगदान दिया था। मंदिरों में पाई गई मूर्तियों के अलावा, मामल्लपुरम में स्थित ‘ओपन आर्ट गैलरी’ इस काल के मूर्तिकला सौन्दर्य का एक महत्त्वपूर्ण स्मारक है। एक पत्थर में गंगा के अवतरण या अर्जुन की तपस्या को भित्तिचित्र कहा जाता है।
- पल्लवों के संरक्षण में ललित कला के अंतर्गत संगीत, नृत्य और चित्रकला भी विकसित हुई थी। अलवार एवं नयनार अपने भजन विभिन्न संगीत के सुरों में रचते थे। इस अवधि के दौरान नृत्य और नाटकों का भी विकास हुआ। इस काल की मूर्तियाँ कई नृत्य मुद्राएँ दर्शाती हैं।
पल्लव काल मंदिर निर्माण का एक महान युग था। पल्लवों ने बौद्ध चैत्य विहारों से विरासत में प्राप्त कला का विकास किया और नवीन शैली को जन्म दिया जिसका पूर्ण विकसित रूप पांड्य काल में देखने को मिला। पल्लव कला की विशेषताएँ भारत से बाहर दक्षिण-पूर्व एशिया तक भी पहुँचीं।