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प्रश्न :
अगर भारत अपने छोटे पड़ोसी देशों के साथ मतभेदों को नहीं सुलझाएगा, तो इससे भारत के पड़ोस में सिर्फ चीन की संलग्नता बढ़ेगी और कुछ नहीं। विवेचना कीजिये।
14 Oct, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 2 अंतर्राष्ट्रीय संबंधउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• भारत के छोटे पड़ोसी देशों में चीन के प्रसार को बताएँ।
• उनसे मतभेदों की दिशा में सार्थक प्रयासों को बताएँ।
हल करने का दृष्टिकोण
• पड़ोसी देशों के लिये भारत की नीति और चीन के प्रभाव के संदर्भ में एक प्रभावी भूमिका लिखें।
• भारत के पड़ोसी देशों पर चीन के प्रभाव की चर्चा करें।
• पड़ोसी देशों में भारत के प्रयासों का संक्षेप में वर्णन करें।
• एक प्रभावी निष्कर्ष लिखें।
भारत के निकट पड़ोसी सभी दक्षिण एशियाई देश तथा म्याँमार भारत के लिये भू-राजनीतिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। वर्तमान सरकार ने नेबरहुड फर्स्ट की नीति की घोषणा की किंतु पिछले कुछ वर्षों में भारत के पड़ोसी देश चीन के ज़्यादा करीब दिख रहे हैं। इसका कारण चीन द्वारा इन देशों में भारी निवेश तथा भारत के सहायता प्रॉजेक्ट की धीमी रफ्तार को माना जा रहा है।
भारत के पड़ोसी देशों में चीन के प्रभाव को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है:
पकिस्तान: पाकिस्तान और चीन की दोस्ती वर्तमान में काफी मज़बूत दिखाई दे रही है। चीन-पाकिस्तान का अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भी खुले तौर पर समर्थन करता आया है। चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर के ज़रिये चीन पाकिस्तान में भारी निवेश कर रहा है। इस कॉरिडोर का पीओके से गुज़रने के कारण भारत इसको अपनी संप्रभुता का हनन मानता है।
मालदीव: वर्तमान समय में मालदीव चीन के बेहद करीब आ गया है। पाकिस्तान के बाद मालदीव चीन के साथ प्री ट्रेड एग्रीमेंट करने वाला दूसरा दक्षिण एशियाई देश है, जबकि भारत इस एग्रीमेंट के लिये अभी भी इंतज़ार ही कर रहा है। चीन ने मालदीव को भारी मात्रा में कर्ज़ दिया है, जिसे निकट भविष्य में चुका पाना मालदीव के बस की बात नहीं है।
श्रीलंका: यद्यपि श्रीलंका को आरंभ से ही चीन के मुकाबले भारत के ज़्यादा करीब देखा जाता है, किंतु श्रीलंका भी चीन के कर्ज़ जाल में फँस चुका है। हाल ही में श्रीलंका ने सामरिक महत्त्व का हंबनटोटा पोर्ट 99 साल की लीज़ पर चीन की सरकारी कंपनी को दिया है। चीन अब श्रीलंका के साथ भी प्री ट्रेड एग्रीमेंट करने की कोशिश कर रहा है।
नेपाल: भारत-नेपाल संबंध आरंभ से ही मज़बूत रहे हैं। नेपाल की राजनीति में भारत के प्रभाव को भी स्वीकार किया जाता रहा है, किंतु नेपाल के ताज़ा चुनाव के बाद सत्ता लेफ्ट पार्टी के केपी शर्मा ओली के हाथों में आ गई है, जो चीन के समर्थक के रूप में जाने जाते हैं। नेपाल के नए संविधान में भारतीय मूल के मधेशियों की उपेक्षा की गई है। वर्तमान में चीन और नेपाल के बीच रेल लिंक की बात को लेकर भी भारत असहज महसूस कर रहा है।
बांग्लादेश: बांग्लादेश की वर्तमान शेख हसीना सरकार को भारत के समर्थक के रूप में देखा जाता है लेकिन बांग्लादेश भी आर्थिक दृष्टि से चीन के ज़्यादा करीब है। बांग्लादेश का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है। चीन और बांग्लादेश के बीच 2002 में रक्षा सहयोग का बड़ा समझौता हो चुका है, जिसके तहत बांग्लादेश को दो चीनी पनडुब्बियाँ भी मिली हैं लेकिन भारत आज भी बांग्लादेश के साथ ऐसे सहयोग के लिये प्रयासरत है।
म्याँमार: म्याँमार में भी चीन भारी निवेश कर रहा है। इससे म्याँमार भी चीन के कर्ज़ जाल में फँस सकता है। चीन के साथ म्याँमार की नज़दीकियाँ भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के लिये चुनौती खड़ी कर सकती है।
भूटान: भूटान दक्षिण एशिया का एकमात्र देश है जिसका झुकाव भारत की ओर सबसे अधिक है। यद्यपि चीन डोकलाम विवाद को सुलझाने के लिये भूटान को कोई दूसरा इलाका देने की पेशकश कर चुका है। यदि चीन डोकलाम को हसिल करने में कामयाब हो जाता है तो यह भारत की बड़ी कूटनीतिक हार होगी। इससे भारत के लिये सुरक्षा के लिहाज़ से गंभीर खतरे उत्पन्न होंगे।
अफगानिस्तान: अफगानिस्तान में भारत की स्थिति संतोषजनक है। अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने में भारत की अहम भूमिका को अमेरिका ने भी स्वीकार किया है। यहाँ भी चीन ने आक्रामक रवैया अपनाया है। चीन ने अफगानिस्तान और तालिबान चरमपंथियों के बीच मध्यस्थता करने का प्रस्ताव रखा है।
भारत के प्रयास: भारत भी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिये प्रयासरत रहा है। इन देशों में भारत ने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिये अरबों रुपए का निवेश किया है। इन प्रोजेक्टों में तेज़ी लाने की भारत पूरी कोशिश कर रहा है। सार्क में भी भारत ने पाकिस्तान को अलग-थलग करने में सफलता प्राप्त की, साथ ही भारत बिम्सटेक के ज़रिये सार्क के अन्य देशों के साथ संबंध को मज़बूत करने की भी कोशिश कर रहा है।
उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि चीन पड़ोस में भारत को घेरने में सफल हो रहा है। मालदीव और श्रीलंका चीन के कर्ज़ जाल में फँस चुके हैं। भूटान को छोड़कर चीन अन्य सभी देशों में भारी निवेश कर रहा है जिससे उनके भी निकट भविष्य में कर्ज़ जाल में फँसने की संभावना बन रही है। चीन की महत्त्वाकांक्षी कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट वन बेल्ट-वन रोड जिसे भारत अपनी संप्रभुता के लिये खतरा मानता है, में भूटान को छोड़कर सभी पड़ोसी देश अपनी रुचि दिखा चुके हैं। अत: भारत को देर किये बिना पड़ोसी देशों के साथ विवादों का समाधान कर उनके विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देना होगा। अगर भारत ऐसा करने में जल्द-से-जल्द सफल नहीं होता है तो वह अपने ही पड़ोस में फिसड्डी साबित हो जाएगा।
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