लाभ के पद (ऑफिस ऑफ प्रॉफिट) से क्या तात्पर्य है? इसके आधार पर सदस्यों की निर्योग्यताओं के पक्ष में तर्क प्रस्तुत करते हुए ऐसे विवादों से बचने के लिये समाधान से जुड़े उपायों की चर्चा कीजिये। (250 शब्द)
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• पहला कथन लाभ के पद के तात्पर्य से संबंधित है।
• दूसरा कथन सदस्यों की निर्योग्यताओं के पक्ष में तर्क एवं ऐसे विवादों के समाधान से जुड़े उपायों की चर्चा से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
• लाभ के पद को स्पष्ट करते हुए परिचय लिखिये।
• सदस्यों की निर्योग्यताओं के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिये।
• ऐसे विवादों के समाधान से जुड़े उपायों की चर्चा कीजिये।
• उचित निष्कर्ष लिखिये।
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लाभ के पद से तात्पर्य उस पद से है जिस पर रहते हुए कोई व्यक्ति सरकार की ओर से किसी भी तरह की सुविधा लेने का अधिकारी होता है। विशेषज्ञों के अनुसार इस प्रावधान का उद्देश्य विधानसभा को किसी भी तरह के सरकारी दबाव से मुक्त रखना होता है।
भारतीय संविधान के अनुछेद 102 (1) (क) व 191 (1) (क) के अंतर्गत लाभ के पद का उल्लेख है लेकिन इसे परिभाषित नहीं किया गया है, जिसके चलते समय-समय पर इससे जुड़े विवाद उभर कर सामने आते रहते हैं।
लाभ के पद से संबंधित सदस्यों की निर्योग्यताओं के पक्ष में तर्क निम्नलिखित रूपों में वर्णित हैं-
- लाभ के पद पर रहते हुए एक नीति निर्माता अपने कार्यपालिकीय दायित्वों से स्वतंत्र रूप से अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकता है। अत: यह शक्तियों के विभाजन के सिद्धांत के विरुद्ध है।
- सरकारों द्वारा संसदीय सचिव या ऐसे ही पदों का प्रयोग 15% (दिल्ली 10%) की संवैधानिक सीमा (मंत्रिमंडल का आकार) को दरकिनार करती है।
- इस प्रावधान को रखने का उद्देश्य विधानसभा को किसी भी तरह के सरकारी दबाव से मुक्त रखना था क्योंकि यदि लाभ के पद पर नियुक्त व्यक्ति विधायिका का भी सदस्य होगा तो इससे प्रभाव डालने की कोशिश की जा सकती है।
- संसदीय सचिव सरकारों की उच्च-स्तरीय बैठकों में भाग लेते हैं और इनकी मंत्रियों एवं मंत्रालयों की फाइलों तक इनकी पूर्णकालिक पहुँच होती हैं। अत: यह पहुँच इन्हें संरक्षण प्रदान कर प्रभाव और शक्ति का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है।
- राजनीतिक समर्थन को सुरक्षित करने और गठबंधन की राजनीति के युग में मंत्रिस्तरीय पदों के विकल्प के रूप में इनका दुरुपयोग भी किया जाता है।
- मंत्रियों की तरह संसदीय सचिवों को गोपनीयता की शपथ (अनुच्छेद 239 कक (4)) नहीं दिलाई जाती है। अत: उनके पास ऐसी जानकारी हो सकती है जो भ्रष्टाचार को जन्म दे सकती है और सार्वजनिक हित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न कर सकती है।
लाभ के पद से जुड़े विवादों के समाधान हेतु उपाय निम्नलिखित रूप में वर्णित हैं-
- सर्वोच्च न्यायलय के बोरदोलोई बनाम स्वपन रॉय (2001) मामले में लाभ के पद के परीक्षण के लिये रेखांकित बिंदुओं का ध्यान रखा जाना चाहिये।
- सर्वोच्च न्यायलय द्वारा जया बच्चन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में परिभाषित लाभ के पद का प्रभावी ढंग से अनुपालन सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- यह पद ब्रितानी ‘एक्ट्स ऑफ यूनियन’ 1701 से प्रेरित है। अत: ब्रिटेन की तरह ऐसे पदों की सूची निर्धारित की जानी चाहिये।
- लाभ के पदों की घोषणा से जुड़े न्यायिक निर्णयों में भिन्नताओं को देखते हुए ऐसे मामलों के निर्धारण हेतु इन्हें संयुक्त संसदीय समिति के पास अवश्य भेजा जाना चाहिये।
निष्कर्षत: लाभ के पदों का निर्धारण राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित होकर करने की बजाय संसदीय लोकतंत्र की गरिमा के अनुरूप किया जाना चाहिये। इसके लिये निर्धारण मानकों की स्पष्टता अनिवार्य शर्त है।