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प्रश्न :
अष्टछाप पर टिप्पणी लिखिये।
03 Oct, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलनाथ द्वारा स्थापित ‘अष्टछाप’ कृष्ण काव्यधारा के आठ कवियों का समूह है जिसका मूल संबंध आचार्य वल्लभ द्वारा प्रतिपादित पुष्टिमार्गीय संप्रदाय से है।
अष्टछाप के आठ कवियों में चार वल्लभ के शिष्य हैं, जबकि चार विट्ठलनाथ के। वल्लभ के शिष्य हैं- सूरदास, परमानन्ददास, कुम्भनदास व कृष्णदास, जबकि विट्ठलनाथ के शिष्योें में नन्ददास, चतुर्भुजदास, गोविन्दस्वामी तथा छीतस्वामी शामिल हैं। वस्तुत: विट्ठलनाथ ने भगवान श्रीनाथ के अष्ट शृंगार की परंपरा शुरु की थी ।
अष्टछाप के कवियों में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण सूरदास हैं जिन्होंने अपनी महान रचना सूरसागर में कृष्ण के बाल-रूप, सखा-रूप तथा प्रेमी रूप का अत्यंत विस्तृत, सूक्ष्म व मनोग्राही अंकन किया है। यही कारण है कि स्वयं वल्लभ ने सूर को ‘पुष्टिमार्ग का जहाज़’ कहा। आचार्य शुक्ल भी कहते हैं- ‘‘आचार्यों की छाप लगी आठ कवियों की जो वीणाएँ कृष्ण माधुरी के गान में प्रवृत्त हुईं, उनमें सर्वाधिक मधुर, सरस व मादक स्वर अंधे गायक सूर की वीणा का था।’’
अष्टछाप में सूरदास के अतिरिक्त दो अन्य कवि भी साहित्यिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं- नन्ददास व कुम्भनदास। नंददास ने ‘भँवरगीत’ व ‘पदावली’ जैसी रचनाएँ लिखीं जिनमें कृष्ण के सगुण रूप को स्थापित किया गया।
कुंभनदास का भी साहित्य की दृष्टि से पर्याप्त महत्त्व है। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं-
‘‘संतन को कहाँ सीकरी सों काम।
आवत जात पन्हैया टूटी, बिसरि गयो हरि नाम।’’
अष्टछाप का न सिर्फ कृष्ण काव्य परंपरा में बल्कि संपूर्ण हिन्दी काव्य में अनूठा स्थान है। इन कवियों ने ब्रज भाषा में निहित गंभीर कलात्मकता और संगीतात्मकता तत्त्व को जो ऊँचाई प्रदान की, वह किसी भी माधुर्य भाव की कविता के लिये अनुकरणीय है।
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