यद्यपि पाल, प्रतिहार तथा राष्ट्रकूट में से कोई भी बड़ा साम्राज्य स्थापित करने में सफल नहीं हुआ परंतु वे काफी समय तक भारत में राजनीतिक शून्यता को भरने में कामयाब रहे। आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये।
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• कथन पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शासकों की भूमिका के आलोचनात्मक विश्लेषण से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
• पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शासकों की भूमिका के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
• पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शासकों की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण प्रस्तुत कीजिये।
• उचित निष्कर्ष लिखिये।
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भारत में पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट जैसी प्रमुख महाशक्तियों का उदय हुआ जो कन्नौज पर आधिपत्य स्थापित करने को लेकर त्रिपक्षीय संघर्ष में काफी लंबे समय तक संलग्न रहीं। गुप्त साम्राज्य के पतन के पश्चात् कन्नौज का वही स्थान था जो मगध साम्राज्य के इतिहास में कभी पाटलिपुत्र का था।
पाल, प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट शासकों की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण निम्नलिखित रूपों में वर्णित है-
- हर्ष के बाद गुर्जर-प्रतिहारों ने उत्तरी भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की और अरबों को सिंध से आगे बढ़ने से भी रोका। त्रिपक्षीय संघर्ष में सफलता के पश्चात् गुर्जर-प्रतिहार सर्वाधिक प्रभावशाली हो गए।
- पाल वंश के शासकों ने बंगाल को राजनीतिक एकता प्रदान करके सांस्कृतिक समुन्नति का मार्ग प्रशस्त किया और भारत की राजनीति में इसके महत्त्व को लगभग चार सौ वर्षों तक स्थापित करने में सफल रहे।
- पाल वंश ने बंगाल में दशकों से चली आ रही मत्स्यन्याय एवं अराजकता को समाप्त कर एक सुदृढ़ राजशक्ति को कायम किया और इनका काल तीनों ही शक्तियों में से सबसे लंबे समय तक चला।
- महाराष्ट्र-दक्कन में राष्ट्रकूट एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति थे जिनका सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रमुख योगदान था। इन्होंने भी आरम्भ में अरबों का विरोध कर महत्ता हासिल की। यदि ये अपनी महत्त्वाकांक्षा को दक्षिण तक ही सीमित रखते तो एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण कर सकते थे।
- लगभग एक सदी तक गंगा घाटी में स्थित कन्नौज नगर के ऊपर नियंत्रण को लेकर आपस में लड़ने के पश्चात् अंतत: नौवीं शताब्दी में गुर्जर-प्रतिहारों ने आधिपत्य स्थापित करने में सफलता पाई।
- त्रिपक्षीय संघर्ष ने तीनों महाशक्तियों की स्थिति को कमज़ोर किया जिससे ये एक बड़ा साम्राज्य कायम नहीं कर सकीं और इसने तुर्कों को इन्हें सत्ता से बेदखल करने में सक्षम बनाया।
- तीनों महाशक्तियों की शक्ति लगभग समान थी जो मुख्यत: विशाल संगठित सेनाओं पर आधारित थी लेकिन कन्नौज के संघर्ष का लाभ उठाकर सामंतों ने अपने-आप को स्वतंत्र घोषित कर दिया, जिससे रही-सही एकता भी नष्ट हो गई।
त्रिपक्षीय संघर्ष की शक्तियाँ लगभग एक साथ अस्तित्व में आई और लुप्त हो गईं। यद्यपि ये भारत में एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करने में सफल नहीं हुईं लेकिन राजनीतिक शून्यता को काफी लम्बे समय तक भरने में कामयाब रहीं।