नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    पर्यावरणीय नियतिवाद की संक्षिप्त विवेचना कीजिये तथा वर्तमान में उसकी प्रासंगिकता को स्पष्ट कीजिये।

    30 Sep, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स भूगोल

    उत्तर :

    प्रश्न विच्छेद

    • पर्यावरणीय नियतिवाद एवं वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता।

    हल करने का दृष्टिकोण

    • पर्यावरणीय नियतिवाद की चर्चा करें।

    • वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता को स्पष्ट करें।

    पर्यावरणीय नियतिवाद की संकल्पना इतिहास के आरंभ से चली आ रही है। यह संकल्पना मनुष्य पर प्रकृति की प्रधानता को बताती है। वर्तमान वैज्ञानिकता एवं अंधाधुंध विकास के युग में यह कितनी प्रासंगिक है, इसे विचारों के आलोक में समझे जाने की आवश्यकता है।

    इस संकल्पना के अनुसार मनुष्य पर्यावरण की संतति है। पर्यावरण ने ही मनुष्य के विचारों को एक निश्चित दिशा दी है, उसके सामने कठिनाइयाँ उपस्थित की हैं, जिनसे उसके शरीर को बल एवं बुद्धि को तीव्रता मिली है। अर्थात् पर्यावरण ही मानवीय क्रियाकलापों को पूर्णतया नियंत्रित करता है। इस संकल्पना के अनुसार विश्व के विभिन्न भागों में मानवीय व्यवहार में अंतर प्राकृतिक पर्यावरण में अंतर के कारण ही होता है। कुमारी सैम्पुल ने इसे इस प्रकार स्पष्ट किया है, ‘‘प्रकृति ने पर्वतों पर रहने वाले मनुष्यों को ढालों पर चढ़ने-उतरने के लिये लोहे के पैर (मजबूत पैर) दिये, समुद्र तट पर रहने वाले मनुष्यों को पतवार चलाने के लिये बलशाली सीने और भुजाएँ दीं।’’ इस संकल्पना के अनुसार पर्यावरण का नियंत्रण केवल मनुष्य के विचारों एवं भावनाओं पर ही नहीं होता है बल्कि उसके धार्मिक विश्वासों, भोजन, वस्त्र, आवास एवं आर्थिक विकास पर भी होता है।

    आज विज्ञान ने इतनी प्रगति कर ली है कि मनुष्य पर्यावरण का नियंता बन गया है। मनुष्य ने अपने आविष्कारों एवं उद्यमिता से दुर्गम पहाड़ों, वन, रेगिस्तान एवं दर्रों को सुगम बना दिया है, अर्थात् अपने समक्ष उपस्थित प्राकृतिक बाधाओं को बौना साबित कर दिया है। परिवहन साधनों के विकास, वातानुकूलन यंत्रों एवं वस्त्रों ने पर्यावरणीय नियतिवाद की इस संकल्पना को अप्रासंगिक बना दिया है कि पर्यावरण मनुष्य के विचारों का नियंता है। परंतु जब हम अंधाधुंध विकास के चलते हो रहे पर्यावरणीय क्षति पर विचार करते हैं तो यह संकल्पना प्रासंगिक लगती है। आरंभिक समय में पर्यावरण ही मनुष्य का पालना था तथा इसकी कठिनाइयों से लड़ते हुए ही मनुष्य में वैज्ञानिक विचारों का विकास हुआ। ऐसे में इसे बनाए रखने के लिये हमें इसमें कम-से-कम हस्तक्षेप का प्रयास करना चाहिये, विशेषकर बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं (जो मानवीय हस्तक्षेप का परिणाम है) के संदर्भ में ऐसा किया जाना आवश्यक है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow