“हिमालय प्रदेश में भू-आकृतिकीय परिवर्तन पर्यावरणीय आपदाओं के लिये अधिकांशतः उत्तरदायी हैं।” प्रासंगिक उदाहरणों के साथ टिप्पणी कीजिये।
उत्तर :
प्रश्न-विच्छेद:
हिमालय प्रदेश में भू-आकृतिकीय परिवर्तन।
हिमालय प्रदेश में भू-आकृतिकीय परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होने वाली पर्यावरणीय आपदाएँ।
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हिमालय भू-गर्भिक रूप से दुनिया की सबसे अस्थिर पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है एवं अत्यधिक ऊंचाई, खड़े ढ़ाल, बड़ी संख्या में हिमनदों की उपस्थिति इस क्षेत्र को स्वाभाविक रूप से प्राकृतिक आपदाओं के लिये अतिसंवेदनशील बनती हैं।
हिमालय प्रदेश में भू-आकृतिकीय परिवर्तन:
- भूकंप एवं भू-स्खलन के कारण होने वाले भू-आकृतिकीय परिवर्तन।
- हिमनदों का पिघलने के कारण भू-आकृतिकीय परिवर्तन।
- मानवीय हस्तक्षेपों से प्रेरित भू-आकृतिकीय परिवर्तन; जैसे कि- बांधों, सड़कों एवं अन्य अवसंरचनाओं का निर्माण।
- अन्य कारणों से होने वाले भू-आकृतिकीय परिवर्तन; जैसे कि- बादल फटने से प्रेरित भूस्खलन एवं अन्य भू-आकृतिकीय परिवर्तन आदि।
हिमालय प्रदेश में भू-आकृतिकीय परिवर्तनों के कारण होने वाली पर्यावरणीय आपदाओं को निम्नलिखित बिन्दुओं के संदर्भ में समझा जा सकता है-
- हिमालय प्रमुख भूगर्भिक फॉल्ट (Fault) और थ्रस्ट (Thrust) के माध्यम से विभिन्न उपक्षेत्रों में विभाजित है। इन क्षेत्रों का भू-गतिशीलता की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील होने के कारण यहाँ पर्यावरणीय आपदाओं की अधिकता स्वाभाविक है। उदाहरणार्थ- भारत-नेपाल सीमा पर प्रति वर्ष भूकंप की सबसे बड़ी संख्या दर्ज की जाती है।
- हिमालय में अवस्थित ग्लेशियर एशिया और भारत की अधिकांश नदियों के लिये प्रमुख जल-स्रोत हैं। इन ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने की वजह से अल्पकालिक रूप से बाढ़ और दीर्घावधि में सूखा एवं पानी की कमी के रूप में दोहरी आपदा की स्थिति पैदा हो जाती है। बिहार में हर वर्ष कोसी नदी में आने वाली बाढ़ को इस संदर्भ में देखा जा सकता है।
- पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेसिअल लेक आउटबर्स्ट (Glacial Lake Outburst) के कारण अल्पकालिक तीव्र बाढ़ आपदा का रूप ग्रहण कर लेती है। साथ ही इसके कारण भू-स्खलन की समस्या भी प्रबल हो जाती है।
- कई बार पर्वतीय क्षेत्रों में वनाग्नि आपदा का रूप धारण कर लेती है। उल्लेखनीय है कि भूकंप आदि के कारण चट्टानों के आपस में टकराव से वनों में आग लग जाती है।
- हिमालय में उच्च-भूकंपीय क्षेत्रों में बांध परियोजनाओं के कारण, भूस्खलन, फ्लैश-बाढ़, भूकंप आदि की तीव्रता और बारंबारता में वृद्धि आसपास के क्षेत्रों एवं परियोजनाओं दोनों के लिये अत्यंत गंभीर है।
- बांधों के निर्माण के कारण बड़ी मात्रा में अवसादन जहाँ एक ओर भूस्थैतिक असंतुलन पैदा करता है वहीं मैदानी क्षेत्रों में इन नदियों द्वारा स्थानांतरित पोषक तत्त्वों की कमी दीर्घकालिक रूप से कृषि उत्पादन को दुष्प्रभावित करती है। पोषक तत्त्वों में आने वाली इस कमी को पूरा करने के लिये अत्यधिक उर्वरकों के प्रयोग से उक्त क्षेत्रों में अन्य पर्यावर्णीय समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो नई आपदाओं को प्रेरित करती हैं।
- प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों से वनोन्मूलन भूकंपों के विनाशकारी प्रभावों को बढ़ाती है और अधिक भूस्खलन तथा बाढ़ को प्रेरित करती है।
यद्यपि इस क्षेत्र में होने वाली अधिकांश भू-आकृतिकीय परिवर्तनों एवं उसकी वजह से घटित पर्यावरणीय आपदाओं का कारण प्राकृतिक हैं किंतु निरंतर बढ़ते मानवीय हस्तक्षेपों ने न केवल इन आपदाओं की तीव्रता बल्कि बारंबारता को भी बढ़ा दिया है।