‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’ (SPEL) के बारे में बताइये तथा लुप्तप्राय भाषाओँ की सुरक्षा हेतु कुछ उपाय सुझाइये।
उत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण
• परिचय में भाषा के बारे में बताइये।
• ‘लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना’ (SPPEL) के बारे में लिखिये।
• भाषाओं के पतन के कारण व इसे रोकने के उपाय बताइये।
• अंततः निष्कर्ष लिखिये।
|
भाषा वह माध्यम है जिसके द्वारा मनुष्य अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करता है तथा इसके लिये वह वाचिक ध्वनियों का उपयोग करता है। सामान्यतः भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है तथा यह हमारी अस्मिता एवं सामजिक-सांस्कृतिक विकास का माध्यम भी है, किंतु हाल ही में भारत में अनेक भाषाएँ विलुप्ति की कगार पर पहुँच गईं हैं। भारतीय लोकभाषा सर्वेक्षण, 2013 के अनुसार पिछले 50 वर्षों में 220 भाषाएँ लुप्त हो चुकी हैं, जबकि 197 भाषाओं को लुप्तप्राय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
लुप्तप्राय भाषाओं की सुरक्षा और संरक्षण के लिये योजना (SPPEL)
- इसका एकमात्र उद्देश्य देश की ऐसी भाषाओं का दस्तावेजीकरण करना और उन्हें संगृहीत करना है जिनकी निकट भविष्य में लुप्तप्राय या संकटग्रस्त होने की संभावना है।
- इस योजना के अधीन केन्द्रीय भारतीय भाषा संस्थान देश में 10000 से कम लोगों द्वारा बोली जाने वाली सभी मातृभाषाओं और भाषाओं की सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रलेखन का कार्य करता है।
भाषाओं के पतन के कारण :
- भारत सरकार द्वारा 10,000 से कम लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषाओं को मान्यता नहीं दी जाती है।
- समुदायों की प्रवासन एवं आप्रवासन की प्रवृत्ति के कारण पारंपरिक बसावट में कमी आती जा रही है, जिसके कारण क्षेत्रीय भाषाओं को नुकसान पहुँचता है।
- रोज़गार के प्रारूप में परिवर्तन बहुसंख्यक भाषाओं का पक्षधर है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन।
- ‘व्यक्तिवाद’ की प्रवृत्ति में वृद्धि होना, समुदाय के हित से ऊपर स्वयं के हित को प्रथिमकता दिये जाने से भाषाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
क्या किये जाने की आवश्यकता है?
- भाषा के अस्तित्व को सुरक्षित रखने का सबसे बेहतर तरीका ऐसे विद्यालयों का विकास करना है जो अल्पसंख्यकों की भाषा (जनजातीय भाषाएँ) में शिक्षा प्रदान करते हैं। यह भाषा के संरक्षण करने तथा उसे समृद्ध बनाने में सक्षम भूमिका निभा सकता है।
- भारत की संकटग्रस्त भाषाओं के संरक्षण और विकास के लिये प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर एक विशाल डिजिटल परियोजना शुरू की जानी चाहिये।
- ऐसी भाषाओं के महत्त्वपूर्ण पहलुओं जैसे- कथा निरूपण, लोकसाहित्य तथा इतिहास आदि का श्रव्य दृश्य/ऑडियो विज़ुअल प्रलेखन (Documentation) किया जाना चाहिये।
- इस तरह के प्रलेखन प्रयासों को बढ़ाने के लिये ग्लोबल लैंग्वेज हॉटस्पॉट्स (Global Language Hotspots) जैसी अभूतपूर्व पहल के मौजूदा लेखन कार्यों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
निष्कर्षतः भारत की विविधता इसकी अद्वितीय विशेषता है, जिसमें भाषाओं का स्थान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। अतः सरकार व नागरिकों द्वारा लुप्तप्राय भाषाओं के संरक्षण हेतु कदम उठाए जाने की आवश्यकता है ताकि भारत की विविधता को बनाए रखा जा सके।