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प्रश्न :
पद्माकर के शृंगार-वर्णन पर प्रकाश डालिये।
25 Sep, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यउत्तर :
पद्माकर मुख्यत: शृंगार के कवि हैं। इनका शृंगार सामान्यत: रीतिकालीन वैभव व विलास के भीतर देह-प्रेम के उत्सव को चित्रित करता है। पद्माकर ने इसके अंतर्गत नायिका के अंगों की शोभा, विलास, भोग, आदि का चित्रण किया है। पद्माकर के संयोग शृंगार-वर्णन में नायिका के अंतर्मन, शारीरिक-मानसिक आकांक्षा, अभिसार आदि का भी सुन्दर वर्णन हुआ है। शृंगार के निम्नलिखित प्रसंग में उन्होंने विलास के सारे उपादानों को इकट्ठा कर दिया है-
‘‘गुलगुली गिल में गलीचा है, गुनीजन है,
चाँदनी है, चिक है, चिरागन की माला है।
कहै पद्माकर ज्यों गजक गिजा है सजी,
सेज है, सुराही है, सुरा है और प्याला है।’’
इनके शृंगार वर्णन में संयोग-वियोग के प्रसंग प्राय: ऋतुओं-त्यौहारों से जुड़े हैं, जैसे कृष्ण-राधा से संबंधित निम्नलिखित पद होली के त्यौहार का जीवंत चित्रण करता है-
‘‘या अनुराग की फाग लखौ, जहँ राजत राग किसोर किसोरी।
गोरिन के रंग भीजिगो साँउरो, साँउरे के रंग भीजिगो गोरी।।’’
पद्माकर के शृंगार-वर्णन में संयोग के समान वियोग भी गहरा व व्यापक है। नायिका के विरह को कवि ने प्रकृति की उदासी एवं हृदयहीनता के माध्यम से भी चित्रित किया है -
‘‘पावस बनाओ तो न विरह बनाऔ।
जो विरह बनायौ तो न पावस बनाऔ।’’
स्पष्ट है कि शृंगार के संयोग-वियोग दोनों पक्षों की जैसी मार्मिक अभिव्यक्ति पद्माकर ने की है, वह अन्यत्र दुर्लभ है।
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