पर्यावरणीय शिक्षा के लक्ष्यों और सिद्धांतों की विवेचना कीजिये। भारत में औपचारिक एवं अनौपचारिक पर्यावरणीय शिक्षा के आधारभूत सरोकारों का वर्णन कीजिये।
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद:
• पर्यावरणीय शिक्षा के लक्ष्य
• पर्यावरणीय शिक्षा के सिद्धांत
• भारत में पर्यावरणीय शिक्षा से संबंधित आधारभूत मुद्दे/सरोकार
1. औपचारिक शिक्षा
2. अनौपचारिक शिक्षा
हल करने का दृष्टिकोण:
• संक्षिप्त भूमिका लिखते हुए प्रश्न के विभिन्न आयामों को क्रमबद्ध तरीके से लिखें।
• संक्षिप्त एवं सार्थक भूमिका लिखें।
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UNESCO के अनुसार ,” पर्यावरणीय शिक्षा पर्यावरण संरक्षण के लक्ष्यों को लागू करने का एक तरीका है। यह विज्ञान की एक अलग शाखा नहीं है, बल्कि अध्ययन का एक सतत अंतर-विषयक क्षेत्र है।” साथ ही पर्यावरणीय शिक्षा की महत्ता को समझते हुए इसे सतत् विकास लक्ष्यों के अंतर्गत SDG-4.7 के रूप में भी शामिल किया गया है।
पर्यावरणीय शिक्षा के लक्ष्य :
- आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक एवं पारिस्थितिक अंतर-निर्भरता एवं इनसे जुड़ी चुनौतियों के संदर्भ में जागरूक करना।
- प्रत्येक व्यक्ति को पर्यावरण की रक्षा और सुधार के लिये आवश्यक ज्ञान, मूल्य, दृष्टिकोण, प्रतिबद्धताओं एवं कौशल प्राप्ति के लिये अवसर प्रदान करना।
- पर्यावरण के प्रति समग्र रूप से व्यक्तियों, समूहों और समाज के व्यवहार में सकारात्मक सुधार करना।
पर्यावरणीय शिक्षा के सिद्धांत :
पर्यावरणीय शिक्षा पर अंतर-सरकारी सम्मलेन के ‘त्बिलिसी घोषणा-पत्र’ (Tbilsi Declaration) में बताए गए मार्गदर्शक सिद्धांतों में से कुछ प्रमुख सिद्धांत निम्नलिखित हैं-
- अंतर-विषयक दृष्टिकोण के साथ एक समग्र व संतुलित परिप्रेक्ष्य बनाना।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखते हुए वर्तमान और संभावित पर्यावरणीय स्थितियों पर ध्यान देना।
- पर्यावरणीय समस्याओं की रोकथाम और समाधान में स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के मूल्यों को बढ़ावा देना।
- विकास और संवृद्धि की योजनाओं में पर्यावरणीय पहलुओं पर स्पष्ट रूप से विचार करना।
- शुरुआती वर्षों में पर्यावरण संवेदनशीलता पर विशेष जोर देने के साथ ही पर्यावरणीय संवेदनशीलता, ज्ञान, समस्याओं को सुलझाने के कौशल, और मूल्यों के स्पष्टीकरण को हर उम्र से संदर्भित करना।
यद्यपि भारत शुरुआत से ही पर्यावरण के प्रति संवेदनशील देशों में शामिल रहा है किंतु यहाँ की शिक्षा-व्यवस्था अभी तक पर्यावरणीय शिक्षा को सतत्, प्रबंधित एवं व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करने में कई आधारभूत मुद्दों से ग्रसित दृष्टिगोचर होती है।
औपचारिक पर्यावरणीय शिक्षा के संदर्भ में :
- सक्षम एवं प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव एवं आधारभूत शैक्षणिक अवसंरचनाओं की अपर्याप्तता।
- पाठ्यक्रम एवं शिक्षण प्रणाली में नवीनीकरण का अभाव; फलतः वर्तमान परिदृश्य में पर्यावरणीय समस्याओं के व्यावहारिक समाधान हेतु मार्गदर्शन कर पाने में सक्षम न हो पाना।
- अप्रभावी पर्यावरण शैक्षिक कार्यक्रम और नीतियों के कारण यह पर्यावरणीय शिक्षा को कैरियर हेतु विकल्प के रूप में चुनने के लिये छात्रों को आकर्षित करने में असफल रही है।
- पर्यावरण प्रशिक्षण कार्यक्रमों के स्तर, इसकी सामग्री एवं मॉड्यूल का संतोषजनक न होना।
- सामान्य शिक्षाप्रणाली से जुड़ी अन्य समस्याएँ; जैसे कि स्कूल ड्रॉपआउट की समस्या इत्यादि।
अनौपचारिक पर्यावरणीय शिक्षा के संदर्भ में :
- इस संदर्भ में अधिकांशतः मीडिया का सकारात्मक एवं सक्रिय रुख एवं राजनीतिक व प्रशासनिक इच्छाशक्ति का अभाव एक बड़ी समस्या है।
- यद्यपि परंपरागत ज्ञान एवं रूढ़ियाँ पर्यावरण के प्रति संवेदनशील एवं संरक्षणकारी प्रवृत्ति की हैं तथापि ये वर्तमान समय की विस्तृत समस्याओं की दृष्टि से अपर्याप्त हैं औरअनेक अन्तर्निहित सीमाओं से ग्रसित हैं।
- गरीबी एवं बेरोज़गारी, निरक्षरता एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित जनसंख्या स्वाभाविक रूप से पर्यावरण को प्राथमिकता नहीं दे पाती है।
समग्रतः पर्यावरण संरक्षण की अनिवार्यता एवं उसके लिये पर्यावरणीय शिक्षा की सार्थकता को समझते हुए यह वांछित है कि भारत भी इस संदर्भ में राजनीतिक एवं प्रशासनिक इच्छाशक्ति एवं सतत जन-जागरूकता के माध्यम से निहित मुद्दों को दूर करने हेतु सक्षम समाधानों को अपनाकर समुचित प्रयास करे एवं अन्य देशों का भी मार्गदर्शन करे