गुप्त शासकों के अधीन विज्ञान, साहित्य, धर्म एवं ललित कलाओं के विकास का मूल्यांकन कीजिये।
उत्तर :
प्रश्न विच्छेद
•कथन गुप्त शासकों के अधीन विज्ञान, साहित्य, धर्म एवं ललित कलाओं के विकास के मूल्यांकन से संबंधित है।
हल करने का दृष्टिकोण
•गुप्त वंश के बारे में संक्षिप्त उल्लेख के साथ परिचय लिखिये।
•गुप्त शासकों के अधीन विज्ञान, साहित्य, धर्म एवं ललित कलाओं के क्षेत्र में विकास का मूल्यांकन प्रस्तुत कीजिये।
•उचित निष्कर्ष लिखिये।
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ईसा की तीसरी सदी के मध्य में कुषाण एवं सातवाहन राजवंशों के अवसान के परिणामस्वरुप गुप्त साम्राज्य का उदय हुआ। यह मौर्य साम्राज्य जितना विस्तृत भले ही न रहा हो लेकिन उत्तर भारत को 335 ई. से 455 ई. तक राजनीतिक एकता के सूत्र में बांधने में सफल साबित हुआ। इस एकता रूपी सूत्र के प्रभाव को शासन-प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था के साथ-साथ विज्ञान, साहित्य, धर्म और ललित कला जैसे क्षेत्रों के विकास में भी बखूबी अनुभव किया गया।
गुप्त शासकों के अधीन विज्ञान, साहित्य, धर्म एवं ललित कलाओं के क्षेत्र में विकास का मूल्यांकन निम्नलिखित है-
- यह काल लौकिक साहित्य की सर्जना के लिये स्मरणीय है। इस काल में धार्मिक साहित्य की रचना में व्यापक प्रगति हुई। रामायण और महाभारत गाथा काव्य इसी काल में आकर पूरे हुए।
- इस काल का सर्वोत्कृष्ट मंदिर झाँसी ज़िले में देवगढ़ का दशावतार मंदिर है। यह इस काल में वैष्णव धर्म का न केवल सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है बल्कि इसमें गुप्त स्थापत्य कला अपने पूर्ण विकसित रूप में मिलती है।
- कला की नागर और द्रविड़ दोनों शैलियाँ इस अवधि के दौरान विकसित हुईं। सारनाथ में बुद्ध प्रतिमा का पता लगाया गया जो गुप्त कला का एक अद्वितीय भाग था।
- गुप्तकालीन कला संयत और नैतिक है। कुषाण काल के विपरीत मूर्तियों में नग्नता नहीं है और यहाँ की मूर्तियों में सुसज्जित प्रभामंडल बनाए गए हैं। बौद्ध मूर्तियों में सजीवता एवं मौलिकता का समावेश है।
- कारीगर धातु की मूर्तियों और स्तंभों की ढलाई की कला में कुशल थे। बुद्ध की तांबे की विशाल प्रतिमा इसका प्रमुख उदाहरण है।
- गणित के क्षेत्र के प्रसिद्ध ग्रन्थ आर्यभटीय, खगोलशास्त्र में रोमक सिद्धांत नामक पुस्तक की रचना, धातु की उन्नत जानकारी, कांस्य मूर्तियों का बड़े पैमाने पर निर्माण, लौह शिल्पकारी के अच्छे उदाहरण, महरौली का लौह स्तम्भ इस काल में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पर उचित प्रकाश डालते हैं।
- गुप्त काल के दौरान संस्कृत भाषा प्रसिद्ध हो गई थी। नागरी लिपि, ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई थी। संस्कृत के सबसे अच्छे साहित्य गुप्त काल से संबंधित थे।
- चंद्रगुप्त द्वितीय का दरबार प्रसिद्ध नवरत्नों से विभूषित था जिनमें कालिदास सबसे आगे थे। संस्कृत नाटक शकुंतला उनकी उत्कृष्ट कृति है। स्वयं एक महान कवि समुद्रगुप्त ने हरिसेन सहित कई विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया।
- गुप्त काल में मूर्तिपूजा ब्राह्मण धर्म का सामान्य लक्षण बन गई और बौद्ध धर्म का उत्कर्ष अशोक एवं कनिष्क के काल जैसा नहीं रह गया था। इस काल में महायान बौद्ध धर्म की तुलना में भागवत या बौद्ध सम्प्रदाय अधिक प्रभावी थे।
- वास्तुकला के क्षेत्र में इस काल के अवशेष बहुत कम मिलने से यह नहीं कहा जा सकता कि यह युग वास्तुकला का भी उत्कृष्टतम युग था। वास्तुकला के नाम पर हमें ईंट के बने कुछ मंदिर मिले हैं।
गुप्त काल को कला एवं साहित्य के विकास की दृष्टि से स्वर्ण युग कहा गया है, हालाँकि वास्तुकला की दृष्टि से इसके उत्कृष्टतम युग होने पर प्रश्नचिह्न लगता है। गुप्त शासकों का दृष्टिकोण सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु था। कुल मिलाकर इस काल में विभिन्न स्तरों पर महत्त्वपूर्ण प्रगति देखने को मिलती है।