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प्रश्न :
“आत्म दीपो भव” का विचार वर्तमान में किस प्रकार प्रासंगिक है? स्पष्ट कीजिये।
19 Sep, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
हल करने का दृष्टिकोण-
• “आत्म दीपो भव” का अर्थ स्पष्ट कीजिये।
• इसकी वर्तमान में प्रासंगिकता बताइये।
• सारगर्भित निष्कर्ष लिखिये।
“आत्म दीपो भव” बुद्ध का एक महत्त्वपूर्ण विचार है जिसका अर्थ है “अपना दीपक स्वयं बनो”। अर्थात व्यक्ति को अपने जीवन का उद्देश्य या किसी नैतिक/अनैतिक का फैसला स्वयं लेना चाहिये, किसी दूसरे का मुँह नही ताकना चाहिये। इस विचार में निहित है कि बुद्ध हर व्यक्ति की क्षमताओं में विश्वास रखते हैं और यही विश्वास किसी लोकतंत्र के मूल में भी होता है।
इस विचार की प्रासंगिकता निम्न संदर्भों में देखीं जा सकती है-
- यह विचार छोटे से बुद्धिजीवी वर्ग की बपौती को चुनौती देता है और हर व्यक्ति को उसमें प्रविष्ट होने का अवसर प्रदान करता है। अतः यह विचार भारत की बड़ी मात्रा में निरक्षर जनसंख्या को स्व निर्णयन हेतु मज़बूती प्रदान करेगा।
- वर्तमान में जब विद्यालय बच्चों को ठोक-पीटकर एक जैसा बनाने वाले कारखाने बन चुके हैं। ऐसी स्थिति में जीवन में सही निर्णय लेने हेतु यह विचार और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
- यह विचार लोकतंत्र को मज़बूत बनाने की दृष्टि से भी अत्यंत प्रासंगिक है।
- आज का युग नवाचार का युग है तथा जो व्यक्ति अपना रास्ता स्वयं चुनेगा उसके नवाचारी होने की संभावना उतनी ही अधिक बढ़ जाएगी।
- यदि व्यक्ति स्वयं विचार करने लगता है तो समाज में बढ़ते हुए अंधविश्वासों तथा व्यक्ति पूजा के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ खड़ी हो जाती हैं।
निष्कर्षतः यह विचार एक व्यक्ति के व्यक्तित्त्व विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है और समाज को सही राह की ओर अग्रसर करता है। ऐसे ही समाज में ज़्यादातर नवाचार भी होते हैं जहाँ बिना किसी भय और रोक-टोक के व्यक्ति को अपनी सृजनात्मकता का इज़हार करने का अवसर मिलता है। वाल्टर बेजहॉट ने कहा भी है कि “अनुकरण की संस्कृति दुनिया के अधिकांश समाजों में है किंतु स्वतंत्र चर्चा का वरदान कुछ ही समाजों को मिला हुआ है और आश्चर्य की बात नहीं कि कुछ ही समाज विकास के रास्ते पर आगे बढ़ पाए हैं, जबकि बाकी नहीं।”
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