विद्यापति की सौंदर्य-चेतना पर टिप्पणी लिखिये। (150 शब्द)
14 Sep, 2019 रिवीज़न टेस्ट्स हिंदी साहित्यविद्यापति का सौंदर्य-वर्णन न तो छायावादियों की तरह वायवीय है और न भक्तों की तरह दिव्य, वे इन्द्रियग्राह्य एवं पार्थिव सौन्दर्य के कवि हैं। किन्तु साधारण और चिरपरिचित होने पर भी उनके द्वारा वर्णित सौन्दर्य असाधारण और चिरनूतन है। कवि ने इसे ‘अपरूप’ कहा है और उसकी महिमा कवि के शब्दों में इस प्रकार है-
जनम अवधि हम रूप निहारल नयन न तिरपति भेल।
यह अपरूपता राधा में ही नहीं कृष्ण में भी है:
ए सखि पेखल एक अपरूप।
सुनइत मानवि सपन सरूप।।
विद्यापति ने यौवन और सौंदर्य का वर्णन करने में उपमा की अनुपम झड़ी लगा दी है।
शैशव और यौवन के संगम पर खड़ी नायिका की वय: सन्धि के, नायिका की कामचेष्टाओं और हाव-भावों के, सद्य: स्नाता के, राधा के रूप सौन्दर्य के मोहक प्रभाव के वर्णन में विद्यापति का मन खूब रमा है-
देख देख राधा रूप अपार।
अपुरूब के विहि आनि मिलाओल खितितल लावनी सार।।
समग्रत: विद्यापति अपने सौंदर्य-वर्णन की अद्वितीयता से विस्मित और चकित करते हैं। खासकर तब जब विद्यापति के सामने लोकभाषा में सौन्दर्य-चित्रण की कोई समृद्ध-परंपरा उपलब्ध नहीं थी। ऐसे में संस्कृत के महाकवि कालिदास के सौन्दर्य-वर्णन के निकट जाता उनका सौन्दर्य-चित्रण एक बड़ी छलांग है।