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प्रश्न :
आधुनिकीकरण के इस दौर में जहाँ मानव तेज़ी से भोग-विलासिता की तरफ बढ़ रहा है, यह कहना कहाँ तक उचित होगा कि मानव आज चार्वाक दर्शन का अनुसरण कर रहा है? परीक्षण कीजिये।
14 Sep, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 4 सैद्धांतिक प्रश्नउत्तर :
वर्तमान समय में मनुष्य भौतिकवाद की ओर उन्मुख हो रहा है तथा वह प्रकृति और उसके जीव- जंतुओं की उपेक्षा कर अपने सुख को सर्वाधिक महत्त्व दे रहा है। भारतीय दर्शन के नौ संप्रदायों में से चार्वाक अकेला है जो सुखवाद के पक्ष में खड़ा है तथा तत्काल और सीमित मिलने वाले सुख को सर्वश्रेष्ठ मानता है।
चार्वाक संप्रदाय का स्पष्ट मत है कि जब तक जियो सुख से जियो। चार्वाकों ने सुखभोग के संबंध में कुछ स्पष्ट सिद्धांत भी बताए हैं। इनका पहला सिद्धांत है कि भविष्य की अनिश्चित सुख की बजाय वर्तमान के निश्चित सुख का भोग किया जाना चाहिये। दूसरा सिद्धांत है कि कोई भी सुख पूर्णतः शुद्ध नहीं होता, उसमें किसी-न-किसी मात्रा में दुख भी शामिल होता है। किंतु उस छोटे-मोटे दुख से डरकर सुख की कामना छोड़ना निरर्थक है। उदाहरण के लिये मछली खाना इसलिये नहीं छोड़ना चाहिये कि उसमें काँटा होता है।
वर्तमान में मनुष्य द्वारा अपनी सुख-सुविधा के लिये पेड़ों को काटना, जीव-जंतुओं को नुकसान पहुँचाना व अपनी भावी पीढ़ी की चिंता किये बिना संसाधनों का अतिदोहन करना आदि कृत्य उसके निकृष्ट या स्थूल सुखवाद को प्रदर्शित करते हैं। इसके अतिरिक्त वैश्विक स्तर पर बढ़ रही संरक्षणवादी प्रवृत्ति मनुष्य के व्यक्तिगत सुखों तक सीमित रहने की द्योतक है। आज मानव अध्यात्म से ज़्यादा भौतिकवाद को महत्त्व दे रहा है तथा वह सांसारिक सुखों की चकाचौंध की ओर अधिक आकर्षित है, चार्वाक भी सांसारिक सुख को प्राथमिकता देते हैं।
हालाँकि मनुष्य में चार्वाकी प्रवृत्ति बढ़ी है किंतु यह संपूर्ण समाज के संदर्भ में सही नहीं कही जा सकती। आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो स्वयं से अधिक महत्त्व अपने समाज को देते हैं। देश की सीमा पर तैनात रहने वाले सैनिक इस बात के प्रमाण हैं। इसके अतिरिक्त विश्व स्तर पर पर्यावरण व जीव-जंतुओं की सुरक्षा हेतु प्रयास करने वाले पर्यावरणविद भी इस बात को स्वीकार करते हैं कि धरती सिर्फ मानवों की नहीं है और वे चार्वाक दर्शन के सिर्फ व्यक्ति के सुख को महत्त्व देने वाले सिद्धांत के विरोधी नज़र आते हैं।
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